कल और आज
कभी ईद की इबादतों में हम होते थे शरीक़,
अब वो ईद में हमें अपने घर बुलाते हैं।
कभी दीवारों पर लिखी थी इबारतें जो हमने,
फुरसत में बैठकर आजकल उसे गुनगुनाते हैं।
कभी ईद की इबादतों में हम होते थे शरीक़,
अब वो ईद में हमें अपने घर बुलाते हैं।
कभी दीवारों पर लिखी थी इबारतें जो हमने,
फुरसत में बैठकर आजकल उसे गुनगुनाते हैं।