कल, आज और कल ….
कल, आज और कल ….
वर्तमान का अंश था
जो बीत गया है कल
अंश होगा वर्तमान का
आने वाला कल
वर्तमान के कर्म ही
बन जाते हैं दंश
वर्तमान से निर्मित होते
सृजन और विध्वंस
वर्तमान की कोख़ में
सुवासित
हर पल के वंश
वर्तमान से युग बनते
युग में कृष्ण और कंस
कागा धुन निष्फल होती
मोती चुगता हंस
चक्र सुदर्शन कर्म का
करे निर्धारित फल
कर्म बनाएं वर्तमान को
कल, आज और कल
सुशील सरना