कल्याण
कल्याण
“बाबूजी, हमारे जीवन में तो शिवरात्रि आती ही नहीं, मात्र अँधेरी रात है जिसका स्याह अँधेरा दिन के उजाले को भी निगल लेता है।”- प्रोढ़ा स्त्री बगल में मैले-कुचैले- से धूल-धूसरित बच्चे को बगल में दबाए हुए और बेबस निगाहें अनुराग की थाली में रखे दूध पर गढ़ाते हुए बोली।
अनुराग महाशिवरात्रि पर मंदिर में पूजा करने आए थे। जैसे ही वे मंदिर की सीढ़ियाँ चढ़ने लगे, एक आवाज कानों में सुनाई पड़ी- “बाबूजी, बच्चे की खातिर कुछ दे दो न…भूखा है बहुत। भगवान भला करेगा।”
“अरे तुम देख रही हो न शिवरात्रि है , पूजा करने जाना है..कुछ दीन-धर्म है या नहीं…”। उसने कहा था मगर उस स्त्री की बात सुनकर वह कुछ सोचने को मजबूर हो गए। सच ही तो है ‘शिवरात्रि’ का मतलब है कल्याण करने वाली रात। इनका ‘कल्याण’ कहाँ हो पाता है..बेबस हैं बेचारे। उन्होंने कुछ बूँद लोटे में
डालीं और शेष दूध बच्चे के लिए दे दिया। शिवरात्रि पर भक्तों की रौनक बढ़ चली थी।
@बीना