कल्याणकारी राज्य की प्रसंगिकता पर सवाल उठाना गलत
बीते दिनों कुछ अर्थशास्त्रियों ने कल्याणकारी राज्य की प्रासंगिकता पर सवाल उठाते हुए उस की समाप्ति की बात कही है। कल्याणकारी राज्य शासन कि वह संकल्पना है जिससे राज्य नागरिकों के आर्थिक और सामाजिक उन्नति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है ऐसे में भारत जैसे देश जहां आज भी करोड़ों लोग गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन कर रहे हैं संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार 68.7% लोग $2 से कम में अपना गुजारा करने पर मजबूूूर हैं ऐसी स्थिति में कल्याणकारी राज्य की संकल्पना को समाप्त करना किसी भी नजरिए से सही नहीं होगा। पर वर्तमान में सरकार द्वारा चलाई जा रही कल्याणकारी योजनाओंं की दयनिय स्थिति को देखते हुए उनकी बातों से पूर्णता इंकार भी नहीं किया जा सकता विद्यालय अस्पताल आवास योजना एवं मनरेगा जैसी तमाम कल्याणकारी योजनाओं के भ्रष्टाचार के तले दब जाने से उसका लाभ जनता तक सीधे नहीं पहुंच पाता। यह सरकार की अदक्षता को प्रदर्शित करता है सरकार को चाहिए कि शासन में मितव्ययिता दक्षता और प्रभावशीलता को स्थापित करने के साथ-साथ शासन में जवाबदेहीता पारदर्शिता एवं उत्तरदायित्व को भी बल दिया जाए। और सरकारी विभाग के सिविल सेवकों को सिर्फ नियम अनुपालन पर बल न देकर परिणाम प्राप्ति पर बल देना चाहिए ताकी कल्याणकारी योजनाओं की पहुंच अंतिम व्यक्ति तक सुनिश्चित हो।
रोहित राज मिश्रा
हिंदू छात्रावास इलाहाबाद विश्वविद्यालय