कल्पना एवं कल्पनाशीलता
कल्पना संभावनाओं की मानसिक रचना है ।
मनुष्य का मस्तिष्क तीव्र गति से चलायमान रहता है। यह हर समय सोते -जागते चलता ही रहता है । जिसमें कल्पनाओं की सतत् उत्पत्ति होती रहती है। कल्पनाशीलता के दो पक्ष हैं :
प्रथम सार्थक पक्ष, इसमें किसी विशेष विषय में चिंतन एवं विश्लेषण एवं अंतर्निहित ज्ञान एवं आत्म तर्कों की कसौटी पर निष्कर्ष पर पहुंचना सम्मिलित है। अन्वेषण एवं अनुसंधान का आधार इस पक्ष की श्रेणी में आता है।
परिकल्पनाओं की उत्पत्ति एवं उनकी सत्यता का वास्तविकता के परिपेक्ष्य में चिंतन, तथा यथार्थ एवं अनुमान के अंतर को स्पष्ट करना इसमें प्रमुख है।
पूर्वानुभव एवं निहित प्रज्ञा की तीव्रता इस पक्ष के प्रमुख कारक हैं।
आत्म परिमार्जन हेतु आत्म विश्लेषण एवं चिंतन भी सार्थक कल्पनाशीलता के प्रमुख लक्षण हैं।
कल्पनाओं का सकारात्मक रूप सार्थक मंथन की श्रेणी में आता है।
कल्पनाशीलता का द्वितीय पक्ष यथार्थ से परे पूर्वाग्रह एवं धारणाओं से निर्मित मस्तिष्क के आभासी मंच पर निर्मित रचनाओं से संदर्भित है।
अधिकांशतः इसमें नकारात्मक चिंतन की अधिकता रहती है एवं सकारात्मक विचारों का अभाव होता है। इस प्रकार की कल्पना का आधार कही सुनी बातों पर एवं समूह मानसिकता से प्रेरित रहता है , तथा इनमें स्वीकार्य तथ्यों का अभाव रहता है।
कल्पनाशीलता मनुष्य का स्वाभाविक गुण है , जो भावनाओं एवं धारणाओं से प्रभावित होता है।
किसी व्यक्ति विशेष के अंतर्निहित संस्कार , बाह्य वातावरण ,जीवन की घटनाओं से सकारात्मक एवं नकारात्मक अनुभूति का प्रत्यक्ष एवं परोक्ष प्रभाव जो उसके मस्तिष्क पड़ता है , इन सभी कारको से उसकी कल्पनाशीलता प्रभावित होती है।
सकारात्मक कल्पनाशीलता कला एवं विज्ञान के क्षेत्र में सृजनात्मक विचारों को जन्म देती है ,
जिससे इन क्षेत्रों में असाधारण सृजनात्मक प्रतिभाओं का जन्म होता है।