Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
20 Nov 2022 · 3 min read

कलुआ

डॉ दम्पत्ति पन्त अपने इलाके के विख्यात सर्जन थे । दोनों एक दोपहर को जब अस्पताल से घर लौटे तो उनके इलाज से ठीक हुआ मरीज़ दरवाज़े पर हाथों में एक काला मुर्गा लिए उनकी प्रतीक्षा कर रहा था । उनके करीब आते ही वह कृतज्ञतापूर्वक बोला
” सर , आपने मुझे नया जीवन दिया , अपने ठीक होने की खुशी में मै ये काला मुर्गा आपके लिये लाया हूं , ये मेरे घर पर पले हैं ”
पन्त जी ने उसकी यह भेंट स्वीकार कर ली । उस मुर्ग़े के पौष्टिकता एवं सुस्वादुयुक्त औषधीय गुणों से वे पूर्वपरिचित थे ।
अंदर घर में डाइनिंग टेबल तैयार थी , हाथ धो कर दोनों खाने बैठ गये । शाम को खाने का मैन्यू भी गृह परिचारिका तैयार कर चुकी थी अतः यह तय हुआ कि अब यह मुर्गा कल बनाया जाय गा । उस मुर्ग़े को पन्त जी ने घर के लॉन में एक छोटी सी लकड़ी को खूंटे की तरह ज़मीन में गढ़वा कर एक लंम्बी डोरी से उस मुर्ग़े की टांग बंधवाकर उसे लॉन में छोड़ दिया और उसके पास कुछ दाना पानी भी रखवा दिया । आते जाते उन लोगों की निगाह उस मुर्ग़े पर पड़ जाती थी जो आराम से लॉन में घूम फिर रहा था । रात को वह एक कोने की झाड़ियों में दुबक कर सो गया । भोर में उसकी बांग से उनकी आंख खुल गयी और अगली सुबह डॉ श्रीमती पन्त जब लॉन में टहलने और अपनी बगिया को निहारने पहुंची तो उस समय वह मुर्गा उनके लॉन की मखमली हरी घास पर जमी ओस की बूंदों को अपने पंजों से रौंदता हुआ सधी लयबद्ध चाल से चहलकदमी कर रहा था । लॉन में पड़ती उगते सूर्य के प्रकाश की किरणों में उसके शरीर के काले पर और पंख किसी मोर के पंखों के सदृश्य चमक रहे थे । वो वाकई में एक खूबसूरत और स्वस्थ मुर्गा था । वह सगर्व लॉन में अपनी गर्दन अकड़ा कर , कलगी खड़ी किये किसी सैनिक की भांति चल रहा था । थोड़ी देर बाद वो मैडम के पीछे पीछे चलने लगा । उन्हें भी उसके इस खेल में मज़ा आने लगा । उसके साथ खेलते हुए उन्होंने देखा कि बीच बीच में , गर्दन घुमा कर उनकी ओर देखते हुए उसकी आंखें मोती की तरह चमक उठतीं थीं । कुछ देर उसके साथ खेलने के पश्चात अंदर आते हुए उस मुर्ग़े पर एक आखिरी दृष्टिपात कर हुए कुछ हंसते हुए उनके मुंह से निकला –
” कलुआ ”

चिकित्सक दम्पत्ति फिर तैयार हो कर अपनी दिन की व्यस्तताओं पर निकल गये । दोपहर को खाने से सजी डाईनिंग टेबल पर फिर दोनों एक साथ मिले । डॉ पन्त जी ने एक एक कर व्यंजनों से भरे डोंगो के ढक्कन हटाने शुरू किये पर मुर्गा किसी में न पा कर उन्होंने पत्नी की ओर प्रश्नवाचक नज़रों से देखते हुए पूंछा
” मुर्गा किसमें है ? ।
उनकी उत्सुकता शांत करते हुए मैडम ने कहा
” उसे मैंने आपके परिचित कपूर साहब के पोल्ट्रीफार्म में भिजवा दिया । हमारे यहां एक दिन का आश्रय पाकर वो हमारा पालतू हो गया था । मेरा मन उस शरणागत को अपना आहार बनाना गवारा नहीं किया इस लिये उस कलुए को मैंने वहां छुड़वा दिया ”
पन्त जी पत्नी की एक जीव के प्रति इतनी दया एवं सम्वेदना को देख गदगद हो गये । उनकी सराहना करते हुए बोले –
” ठीक किया । लौकी के कोफ्ते भी बहुत अच्छे बने हैं ”
उनके विचार से भी सच में मारने वाले से बचाने वाले का मान अधिक है ।
अब वो मुर्गा कपूर साहब के पोल्ट्रीफार्म में पली दो सौ सफेद मुर्गियों के बीच अपनी उसी शान से विचरण कर रहा था । कपूर साहब से बात कर के उन्हें पता चला कि उस काले मुर्ग़े की गुणवत्ता देखते हुए उसके संरक्षण एवं सम्वर्द्धन के लिये वो अपने यहां काले मुर्ग़े एवम मुर्गियों के लिये एक नया दड़बा बनवाने की योजना पर कार्य कर रहे हैं और कुछ इसी प्रजाति की काली मुर्गियां मंगवा रहे हैं । कपूर साहब से बात करने के बाद पन्त जी सोचने लगे –
” जाको राखे सांइयाँ मार सके न कोय , बाल न बांका कर सके जो जग बैरी होय ”
आखिर जो प्राणी किसी की जान बचाने की एवज़ में भेँट चढ़ा हो वो भला मरता क्यों ?
जो अगले दिन डोंगे में उनकी डाईनिंग टेबल पर परोसा जाना था वो आज पोल्ट्रीफार्म में अपने वंशवृद्धि की राह पर चल रहा था । पन्त जी कलुए की नियति की इस परिणिति पर हत्थप्रभ थे ।

Language: Hindi
Tag: लेख
104 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
माँ सच्ची संवेदना...
माँ सच्ची संवेदना...
डॉ.सीमा अग्रवाल
वार
वार
विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’
रखता पैतृक एलबम , पावन पुत्र सँभाल (कुंडलिया)
रखता पैतृक एलबम , पावन पुत्र सँभाल (कुंडलिया)
Ravi Prakash
गर्मी की छुट्टियां
गर्मी की छुट्टियां
लक्ष्मी वर्मा प्रतीक्षा
देशभक्ति का राग सुनो
देशभक्ति का राग सुनो
Sandeep Pande
जियो जी भर
जियो जी भर
Ashwani Kumar Jaiswal
उससे तू ना कर, बात ऐसी कभी अब
उससे तू ना कर, बात ऐसी कभी अब
gurudeenverma198
राखी प्रेम का बंधन
राखी प्रेम का बंधन
रवि शंकर साह
कल्पना ही हसीन है,
कल्पना ही हसीन है,
महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali
मेरी जिंदगी
मेरी जिंदगी
ओनिका सेतिया 'अनु '
प्रेम.....
प्रेम.....
हिमांशु Kulshrestha
💐प्रेम कौतुक-494💐
💐प्रेम कौतुक-494💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
हसरतें हर रोज मरती रहीं,अपने ही गाँव में ,
हसरतें हर रोज मरती रहीं,अपने ही गाँव में ,
Pakhi Jain
भरी महफिल
भरी महफिल
Vandna thakur
समय
समय
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
*Khus khvab hai ye jindagi khus gam ki dava hai ye jindagi h
*Khus khvab hai ye jindagi khus gam ki dava hai ye jindagi h
Vicky Purohit
जब मरहम हीं ज़ख्मों की सजा दे जाए, मुस्कराहट आंसुओं की सदा दे जाए।
जब मरहम हीं ज़ख्मों की सजा दे जाए, मुस्कराहट आंसुओं की सदा दे जाए।
Manisha Manjari
***होली के व्यंजन***
***होली के व्यंजन***
Kavita Chouhan
रिश्तें मे मानव जीवन
रिश्तें मे मानव जीवन
Anil chobisa
चक्करवर्ती तूफ़ान को लेकर
चक्करवर्ती तूफ़ान को लेकर
*Author प्रणय प्रभात*
मित्रता स्वार्थ नहीं बल्कि एक विश्वास है। जहाँ सुख में हंसी-
मित्रता स्वार्थ नहीं बल्कि एक विश्वास है। जहाँ सुख में हंसी-
Dr Tabassum Jahan
3204.*पूर्णिका*
3204.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
*फंदा-बूँद शब्द है, अर्थ है सागर*
*फंदा-बूँद शब्द है, अर्थ है सागर*
Poonam Matia
"काफ़ी अकेला हूं" से "अकेले ही काफ़ी हूं" तक का सफ़र
ओसमणी साहू 'ओश'
मेहनत का फल
मेहनत का फल
Pushpraj Anant
अंगदान
अंगदान
Dr. Pradeep Kumar Sharma
ओढ़े जुबां झूठे लफ्जों की।
ओढ़े जुबां झूठे लफ्जों की।
Rj Anand Prajapati
रंगीला संवरिया
रंगीला संवरिया
Arvina
शिक्षा
शिक्षा
Neeraj Agarwal
"व्याख्या-विहीन"
Dr. Kishan tandon kranti
Loading...