कलियुग की द्रौपदी
आओ मुरारी अब,
द्रौपदी बचाओ तुम्हीं;
पक्ष या विपक्ष हो,
सबों में दु:शासन हैं
घर हो, गली हो या
फिर शासन- प्रशासन हो
पांडव दुबके हुए हैं;
दुर्योधन का शासन है,
आओ मुरारी—-
धर्म का धरा है डोला,
भीम का गदा ना बोला,
पार्थ का गाण्डीव भी,
करे अब वज्रासन है.
आओ मुरारी—-
कुरु की आँखों में हवस,
भीष्म की चले हैं न वस;
द्रोण के गुरुकुल में भी;
हवसियों का शासन है.
आओ मुरारी—-
दिल्ली दहल रही है,
पटना भी परेशां ,
गाँधी के गुजरात का भी;
बिगड़ा अनुशासन है.
आओ मुरारी—-
द्वापर में द्रौपदी को;
आपका सहारा मिला,
कलयुग में द्रौपदी (निर्भया) के;
चारों ओर रावण है .
आओ मुरारी—-