कलियुगी मोबाइल
जबसे आया हाथों में, कलयुगी मोबाइल।
जो देखो वह बन बैठा, आज गुरू घंटाल।।
आज गुरू घंटाल, बना जब राजाबाबू।
इधर-उधर की फेंकते, न रख पाते दिल पे काबू।।
कहें ‘कल्प’ कविराय, आया झूठ बदनु यंत्र तबसे।
हरिश्चन्द्र भी जूठ बोल, सत वचन निभा रहे जबसे।।
✍?अरविंद राजपूत ‘कल्प’