कला
सहिष्णुता इंसानियत मानवीयता
अपनापन सद्भाव आत्मीयता
बची रह गई है गांवों में
शहर में आई तो मगर
लहूलुहान हो गई
नफरत ,लहू के दो रंग
और दिल में दरार कह रही
शहरों में इंसानियत बिकती है
कभी बाजू कभी सीना कभी सर कटता है
पूछो रहने वालों से वहां
कितनी मुश्किल से लोगों का
गुजर होता है वहां
वैश्वीकरण के नाम पर
हम सिर्फ नकल करना सीख रहे हैं
अपनी संस्कृति,कला और आचार विचार
को छोड़कर
हम कभी आधुनिक नहीं हो सकते
आभासी विकास आभासी रोजगार
आभासी परोपकार आभासी साथ
आभासी प्रेम आभासी हम -तुम
सब कुछ इस शहर में
आभासी प्रतीत होता है
रिश्तों के ऊपर
एक धुंध की चादर पड़ी है।