कलाधर छंद
कलाधर छंद
विधान~~गुरु लघु की पंद्रह आवृति और एक गुरु।
अर्थात 2 1×15 तत्पश्चात एक गुरु।
इस प्रकार 31 वर्ण प्रति चरण। चारों चरण सम तुकांत या दो-दो चरण तुकांत
विषय- गुरुदेव
ज्ञान दान बाँटते यहाँ गुणी अनेक संत ,
हाव-भाव प्यार के दिखे अनंत नूर हैं |
बात सार की कहें सदा दिखे सुलेख कंत ,
मेघ नेह के लगे प्रतीकमान सूर हैं ||
राज आज जान लो अनेक रूप शीत-धूप ,
छाँव-ठाँव राव- राज मात तात मान हैं |
ज्ञान के गुरू महेश तीन लोक शान भूप,
फूल-सी सुगंध सींचते गुरू महान है।|
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विषय -मित्र
यार भी लगे विचार-वान हाथ साथ आज ,
ताल-मेल रेल-खेल राग-बाग मोर हैं |
प्यार-तार मार-धाड़ देख-रेख यार नेक ,
प्रीति-मीत गीत-रीत हार-जीत डोर हैं ||
आन-वान शान-गान चंद्र-भान छंद-इंद्र ,
चाह-वाह राज-काज ओज मौज भोर हैं |
हास भाष छाप थाप देख-भाल हाल-चाल ,
खान-पान पार्थ-सार्थ सत्य मित्र शोर हैं ||
सृजन – सुभाष सिंघई
एम• ए• हिंदी साहित्य , दर्शन शास्त्र
जतारा (टीकमगढ़) म०प्र०
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