कलयुग के कन्हैया
सुख छीन रहे दुख बीन वजा वनके मनमोहन ये कलि वाले ।
अपने पन को पनपात नही ,मतभेद बढ़ात सभी दल वाले ।।
कब राम रहीम चहें लरवो ,पर द्वँद मचात सभी मत वाले ।
स्नेही कवि कह चोर किसे , जब बाग उजार रहे रख वाले ।।
सुख छीन रहे दुख बीन वजा वनके मनमोहन ये कलि वाले ।
अपने पन को पनपात नही ,मतभेद बढ़ात सभी दल वाले ।।
कब राम रहीम चहें लरवो ,पर द्वँद मचात सभी मत वाले ।
स्नेही कवि कह चोर किसे , जब बाग उजार रहे रख वाले ।।