कलम व्याध को बेच चुके हो न्याय भला लिक्खोगे कैसे?
कलम व्याध को बेच चुके हो न्याय भला लिक्खोगे कैसे?
निरपराध को अपराधी कह
झूठ लिखोगे, कथा कहोगे।
फल देने वाले वृक्षों को
ठूँठ लिखोगे, कथा कहोगे।
अन्तर्मन जब धिक्कारेगा
राय भला लिक्खोगे कैसे?
कलम व्याध को बेच चुके हो न्याय भला लिक्खोगे कैसे?
शर्मसार होकर भी केवल
उसका ही गुणगान करोगे।
व्याध भले अपशब्द कहेगा
पर तुम तो सम्मान करोगे।
संबल रहित समय निज का
अध्याय भला लिक्खोगे कैसे?
कलम व्याध को बेच चुके हो न्याय भला लिक्खोगे कैसे?
धर्मभ्रष्ट अन्यायी जन को
पण्डित – संत महान लिखोगे।
मन जिनका कालिख से काला
तुम उनका सम्मान लिखोगे।
जिस दिन भी दुष्कर्म खुला
अत्याय भला लिक्खोगे कैसे?
कलम व्याध को बेच चुके हो न्याय भला लिक्खोगे कैसे?
पी ले अन्तस् व्यथा तुम्हारा
ऐसा गीत न लिख पाओगे।
बेंच आस्था निज जीवन में
निशा- दिवस तुम पछताओगे।
जिन पैसों से स्वयं को बेचा
आय भला लिक्खोगे कैसे?
कलम व्याध को बेच चुके हो न्याय भला लिक्खोगे कैसे?
सदा सत्य के पंथ ही चलना
प्रण कर लो यह लक्ष्य साध लो।
कठिन परिस्थिति में डिगने से
अपने मन को आज बाँध लो।
त्याग बिना परिचर्या का
पर्याय भला लिक्खोगे कैसे?
कलम व्याध को बेच चुके हो न्याय भला लिक्खोगे कैसे?
✍️ संजीव शुक्ल ‘सचिन’