कलमकार से
मत गाओ गीत वासना में भीगे ,,श्रृंगार आज की मांग नहीं है ..
ओ कलमकार कुछ बात आज की कह डालो ..
यह मत भूलो की काव्य शक्ति का वरदान तुम्हे बस मिला हुआ
उससे केवल रोटी और शोहरत नहीं कमानी है ;
बंद करो नैराश्य और हास्य का आडम्बर जो अब तक लिखते आये ‘;
बंद करो अब चिंतन ऐसा ये कैसी नादानी है ;
सुन तेरी कविता जमा रक्त समाज का अब उबल पड़े
सब मतवाले हो परिवर्तन करने निकल पड़े ;
बंद करो लिखना रजनी पर, रजनी के प्रियतम पर
प्रियतम पर प्रियतम की निष्टुर रजनी पर
क्रीडा पर उनकी बहने वाली धड़कन पर ”
नारी का श्रृंगार और अस्मत अब खतरे में हरदम
मासूमो पर जुल्म और सितम का पार नहीं है …
लिख डालो अब हो जाये ऐसे पापियों का क्रियाकर्म
लिख डालो तुम गरीब की रोटी पर ,
मजदूरो की बोटी पर
बोटी के खातिर बिकने वाले वोटो पर
वोटो पर ,,छिपी हुई खोटों पर
नोटों पर नोटों के खातिर
जाने वाली जानों पर
न रहे मोह कुर्सी का ,सुरा सुंदरी का
ऐसा व्रत ले लें ,,सत्ता के मठाधीश
हे कलमकार कुछ ऐसा जादू कर डालो
इतिहास हमेशा याद रखेगा ,,कवि को
कवि की पीड़ा और भावना को
उसके परमार्थ और सेवा को