कर्म
माना की पथ पर हार हुई,
फिर भी कोशिश सौ सौ बार हुई।
है स्वेद टपकता माथे से,
है ललाट भी दमक रहा।
मिट्टी में लथ-पथ काया है,
माना कोई देव दूत ही आया है
सुर्य चमकता माथे पर
अग्नी बरसाता रहता है ।
मैं हूँ मुसाफिर राहो का,
जो सब चुपके चुपके सहता है ।
एक और है सागर विपदा का,
एक और रेत भी गर्म हुई।
मैं विचलित हुआ तनिक भर सा
फिर उठा और गिर जाता हूं ,
फिर उठा और गिर जाता हू।
इसमे क्या कोई शर्म हुई ।
माना की पथ पर हार हुई,
फिर भी कोशिश सौ बार हुई।