कर्म
कर्म
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विष्णुपद छंद
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जैसी करनी वैसी भरनी, सोचो कर्म करो ।
कर्मों के रत्नों को चुन-चुन, अपना कोष भरो ।।
जो कुछ जोड़ा है जीवन में, वही लौट मिलता ।
कूकर भी अच्छे कर्मों से, महलों में पलता ।।२
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राधे…राधे…!
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महेश जैन ‘ज्योति’,
मथुरा !
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