कर्म-बीज
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कर्म-बीज
जिजीविषा एक मनोभाव है,
जो कि मन: की मनोभूमि है!
कर्म-बीज जब रोपित होता-
चक्षु हृदय के खुल जाते हैं !!
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आँख के अंधे सब-कुछ कर लें,
जीवन का हर इक रंग भर लें !
हिय अंधे कुछ ना— कर पाएँ –
किंकर्तव्य दशा ——– पाते हैं !!
कर्म बीज जब रोपित होता –
चक्षु हृदय के खुल जाते हैं !
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ग्रह-नक्षत्र सब ही गति-मय हैं ,
देहज, अंडज भी रति-मय हैं ;
जिन के शोणित ही गतिमय हैं-
वह ही जीवन जी —- पाते हैं !
कर्म बीज जब रोपित होता-
चक्षु हृदय के खुल जाते हैं !
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त्वरित लाभ भी हो सकता है,
त्वरित हानि भी हो जाती है ;
लेकिन जीवन पल-पल बीते –
समझौते’ —- मुँहकी खाते हैं !
कर्म बीज जब रोपित होता-
चक्षु हृदय के खुल जाते हैं !
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एक एक ज्यों संख्या बढ़ती ,
एक-एक ज्यों संख्या घटती ;
एक -एक स्वांसा की कीमत-
फेर-बदल ना कर — पाते हैं !
कर्म बीज जब रोपित होता-
चक्षु हृदय के खुल जाते हैं !
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जिन की जिजीविषा जिंदा है ,
सच में वह —-मानव जिंदा है ;
आँख मूँद जो —–देख न पाये-
अंधे वही ——– कहे जाते हैं !
कर्म बीज जब रोपित होता-
चक्षु हृदय के खुल जाते हैं !
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आँख खोल कर सब ने देखा,
आँखों से तो सब को दिखता ;
आँख मूँद भी देख सकें जो —
वो सर्वज्ञ——–कहे जाते हैं !
कर्म बीज जब रोपित होता –
चक्षु हृदय के खुल जाते हैं !
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मौलिक चिंतन
स्वरूप दिनकर /आगरा
21-01-2024
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