कर्म के बंध आधे अधूरे पड़े
कर्म के बंध आधे अधूरे पड़े
कर्म के बंध आधे अधूरे पड़े, भोगना शेष है सालते हैं बड़े।
आप यों मुक्ति के द्वार पर मत चढ़ो, कर्म से पार पाओ तभी तुम बढ़ो।
राह में जो सफलता विफलता मिले,
पुष्प के साथ कांटा निकलता मिले। भाव करुणा दया का कठिन है जरा,
स्वार्थ लालच अहंकार से मन भरा।
क्यों बिना बात के कर रहे हो गिला?
है कहो कौन जिसको सदा सुख मिला?
जिंदगी ये नहीं फूल की सेज है, आज रफ्तार इसकी बड़ी तेज है।
आप यूं मुक्ति के द्वार पर मत चढ़ो,
कर्म से पार पाओ तभी तुम बढ़ो।
राह बदलो यहां से वहां घूम लो,
शूल भी यदि मिले तो उन्हें चूम लो।
कर्म पर ही सदा अपना अधिकार है।
कर्म फल का तो मालिक गुणाकार है।
कर्म जो भी करे फल उसे ही मिलें,
फूल राहों में उसके सदा ही खिलें।
एक नूतन डगर तुम बनाना सदा,
नेह सब प्राणियों में जगाना सदा।कर्म की है अनोखी सदा ही कथा, यदि विफलता मिले मन में न हो व्यथा।
आप यूं मुक्ति के द्वार पर मत चढ़ो,
कर्म से पार पाओ तभी तुम बढ़ो
इंदु पाराशर