कर्म का निवेश
जमीन मे किया जाता है जैसे बिजारोपण.
उसी नुसार होता है उसका फल निर्धारण.
कर्म की भी कुछ ऐसी ही है गती.
जैसे होते है कर्म वैसी ही होती है फलोत्पत्ती.
कर्मफल का होता है अपने संचयन.
और भविष्य में होता है उसका फल उत्पन्न.
लेकिन एक है इसमे सत्य प्रस्थापित.
वर्धित रूप मे प्राप्त होता है फल संभावित.
इसलिये कर्म करते वक्त रहना चाहिए सावधान.
सारासार विवेकसे ही करणा चाहिये कर्म प्रावधान.
कर्म मे करणा चाहिये शुद्ध सात्विक भाव का समावेश.
क्योंकि कर्म मे यही है महत्वपूर्ण निवेश.
शुद्ध और सात्विक अगर रही अपनी भावना
उसी अनुसार होती है कर्मफल की धारणा.
कर्म अगर रहे निशिध्द और अमंगल.
तो वर्धित रूप मे ही मिलता है कर्मफल.
कर्मरूप मे करते है हम निवेश आजीवन.
उसी का फल भोगणे के लिए जडता है भवबंधन.