*कर्मठ व्यक्तित्व श्री राज प्रकाश श्रीवास्तव*
कर्मठ व्यक्तित्व श्री राज प्रकाश श्रीवास्तव
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राज प्रकाश जी सर्वप्रथम टैगोर शिशु निकेतन में अध्यापक थे। जब हमने टैगोर शिशु निकेतन में कक्षा शिशु और प्रथम से लेकर कक्षा पॉंच तक की पढ़ाई की, तब राज प्रकाश जी हमें हिंदी पढ़ाते थे। हमारी हिंदी जैसी भी निखरी है, उसमें राज प्रकाश जी का योगदान नींव के पत्थर का रहा है। हिंदी के शब्दों के अर्थ, पर्यायवाची और विलोम शायद रोजाना का ही कार्य कक्षा में रहता था। राज प्रकाश जी सुलेख पर ध्यान देते थे। जिसके कारण सभी छात्रों का लेख अच्छा हो गया।
उस जमाने में कक्षा चार या पांच में हमने श्याम नारायण पांडे की हल्दीघाटी महाकाव्य की यह पंक्तियां कक्षा में पढ़-पढ़ कर ही कंठस्थ कर ली थीं :-
रण बीच चौकड़ी भर-भर कर चेतक बन गया निराला था/राणा प्रताप के घोड़े से पड़ गया हवा का पाला था
कविता लंबी थी, लेकिन मनोयोग से राज प्रकाश जी पढ़ाते थे। हमारा विचार और भावना भी महाराणा प्रताप और उनके चेतक के पराक्रम से जुड़ गई थी। अतः लंबी कविता कंठस्थ हो गई। टैगोर की ‘शिशु भारती’ में हमने उसे गाकर सुनाया था। अभी तक याद है।
जब हमने कक्षा छह में सुंदर लाल इंटर कॉलेज में प्रवेश लिया, तब राज प्रकाश जी सुंदरलाल इंटर कॉलेज में नियुक्त हो गए। उन्हीं दिनों उनका विवाह हुआ था। राज प्रकाश जी कालांतर में अंग्रेजी के प्रवक्ता नियुक्त हुए तथा इस पद से उन्होंने वर्ष 2000 में अवकाश ग्रहण किया।
वह विद्यालय के संचालन की दृष्टि से पिताजी के सबसे अधिक भरोसेमंद व्यक्तियों में से थे। उन पर विश्वास किया जा सकता था। वह विश्वास के अनुरूप कार्य का परिणाम देने में सक्षम भी थे। दरअसल विद्यालय चलाने में कुछ ऐसे व्यक्तियों की आवश्यकता अवश्य पड़ती है जो भीतर के सभी कामों को सद्भावना के साथ शांतिपूर्वक अदा करने में सक्षम हों। इसके लिए ईमानदारी और बुद्धि-चातुर्य दोनों की आवश्यकता होती है। राज प्रकाश जी में यह दोनों गुण थे। उनके द्वारा प्रस्तुत किसी भी कागज पर अपने हस्ताक्षर करने में पिताजी को अधिक सोचने की आवश्यकता नहीं होती थी। इसीलिए उनका योगदान एक अध्यापक से भी बढ़कर माना जाएगा।
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लेखक: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश
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