कर्मठ मन हो
कर्मरत मन हो , लक्ष्य तय हो तुम्हारा
तैरना जिसे आता है , मिल जाता है उसे किनारा
मिल जाता है उसे किनारा , जो धार से लड़ते हैं
समय की धारा पर , नाम अपना लिखते हैं
कहे कवि हरि , फल पाते हैं वो
फल पाने की चाह छोड़ , कर्म को धर्म बनाते हैं जो