तुम्हारा ध्यान कहाँ है…..
ध्यान एक बहुमूल्य निधि है यदि यह सही प्रकार से सही जगह लग जाए तो ऐसे-ऐसे भेद उजागर होने लगते हैं जिसके बारे में हमने कभी सोचा भी नहीं होता है। ध्यान का अर्थ किसी चित्र अथवा मूर्ति के ध्यान से नहीं है बल्कि विचारों के प्रवाह को रोककर विचार शून्य होने की एक अवस्था है।ध्यान हमें स्वयं से परिचित कराता है।
यह हमारे मन में छुपे विचारों और उनसे उत्पन्न होने वाले नकारात्मक भावों के आरोह-अवरोह को नियंत्रित कर उन्हें सकारात्मकता की ओर मोड़ देता है।
विद्यार्थियों के लिए कई बार ये कहा जाता है तुम्हारा ध्यान कहां है। ये वाक्य हम सब पर भी सटीक बैठता है हम लोगों में से कईयों को नहीं मालूम कि हमारा ध्यान कहां है ?
यदि इसकी खोज की जाए और इसे साधने का अभ्यास किया जाए तो जैसे कोई गोताखोर जब सागर की गहराईयों में पहुंच जाता है तो सागर की ऊपरी लहरें उसे प्रभावित नहीं करतीं वैसे ही यदि हम ध्यान की गहराईयों को छूना शुरू करते हैं तो व्यवहारिक जीवन में उठने वाली अवसाद, तनाव और चिंता की लहरें हमें विचलित नहीं कर पातीं।
चलिए तो आज से ही हम सभी ढूंढते हैं हमारा ‘ध्यान’ कहां है?