*”कर्जदार “*
“कर्जदार’
सृष्टि की रचना में अदभुत शक्तियाँ विद्यमान है लेकिन हम उसे अपने जीवन में सदुपयोग करते हुए कभी कभी दुरुपयोग करने लगते हैं जिसका ऋण परमात्मा के द्वार पर हिसाब किताब बराबर मात्रा में कर्ज के रूप में चुकाया जाता है। प्रकृति के खजाने में सभी प्रकार की वस्तुएँ उपलब्ध है जिसे हम दैनिक जीवन में प्रयोग करने के बाद भी अत्याधिक मात्रा में बच जाता है उसे हम उसे बर्बाद कर फेंक दिया करते हैं या जला कर नष्ट कर देते हैं यह सामन्यतः गलत है।
प्रकृति से हमें जो कुछ भी मिला हुआ है उसे पुनः किसी न किसी तरह से लौटाना ही पड़ता है क्योंकि हमने प्रकृति की धरोहर से जो अमूल्य वस्तुएँ प्राप्त की है वह सभी चीजें जीवन में किसी न किसी रूप में काम मे लाई जाती है जैसे – भोजन , पानी ,वस्त्र ,औषधि इत्यादि अन्य सामग्री हम उपयोग में लाते हैं और बहुत सी चीजें नष्ट करते रहते हैं इन सभी नष्ट की गई चीजों का हर्जाना भरना ही पड़ता है चाहे जिस रूप में भुगतना पड़ेगा।
प्रकृति प्रदत्त जितनी भी सुविधाओं का लाभ मिलता है उससे कहीं ज्यादा हम चीज़ों को पाकर बरबादी की ओर ले जाते हैं। पानी , खादय सामग्री ,वस्त्रों ,आभूषण ,एवं अन्य अतिरिक्त वस्तुएँ जो हमें वरदान के रूप में प्राप्त हुई है उन सभी चीजों का मूल्य हमें किसी न किसी तरह चुकाना पड़ता है हम सभी कर्जदार है।धरती माँ की गोद में बहुत सी चीजें प्राप्त है लेकिन उसका मूल्य हम समझ ही नही पाते हैं अब देखिए न जीवन के लिए सबसे ज्यादा जरूरी पानी है जल के बिना जीवन अधूरा है उसकी हर बूंदे कीमती है और हम कितना सारा पानी यूँ ही बर्बाद कर देते हैं।
रहीम ने कहा भी है –
रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून।
पानी गये न ऊबरे,मोती मानुष चुन।।
पानी अमूल्य है इसे बचाकर रखिये पानी के बिना जगत सूना है पानी का उपयोग उतना ही जरूरी होता है जितनी हमें आवश्यकता हो अन्यथा पानी बरबाद नही करना चाहिए हो सके तो पेड़ पौधों में , पशु पक्षियों के लिए कुछ अलग अलग जगहों पर रख दिया जाना चाहिए आने जाने वाले राहगीरों के लिए भी शुद्ध पेयजल पूर्ति कर देना चाहिए ।
पानी का मूल्य समझिए उसे बचाकर रखिये आखिर धरती माँ कब तक भार वहन करेगी उसके लिए पेड़ पौधे लगाना भी जरूरी है हमें पानी उतनी ही मात्रा में उपयोग में लाना चाहिए जितनी जरूरत हो वरना ऊपर पहुंचकर सारे कर्मों का लेखा जोखा उतना ही देना पड़ेगा जो जितनी चीजों की बर्बादी करेगा उतनी ही चीजों से भुगतान करना पड़ेगा वैसे ही हिसाब किताब चुकाना पड़ेगा …….! ! !
पानी अगर अत्यधिक मात्रा में हो तो पानी को बचाते हुए प्यासों को पिलाना बेहद जरूरी है जगह जगह पर प्याऊ बनवाया जाय ताकि आने जाने वाले मुसाफिरों को मुफ्त में पीने का पानी मिलते रहे।
पानी की तरह अन्न का भी प्रयोग खाना खाने के बाद बचे हुए भोज्य पदार्थों को भूखे रहने वाले व्यक्तियों , पशु पक्षियों में बांट दें ताकि उनकी आत्मा भी तृप्त हो जाये आखिर अन्न का भी कर्ज बने रहता है उसे अन्नदान करके भी उतारा जा सकता है कहा भी गया है कि “दाने दाने में लिखा है खाने वालों का नाम” जिस व्यक्ति के नाम पर अन्न का दाना खाने के लिए लिखा रहता है वहाँ किसी न किसी बहाने से उस जगह पर पहुँच ही जाता है उसके हिस्से की वह वस्तुएँ प्राप्त हो जाती है। ये सभी कर्मों का लेखा जोखा है विधि का विधान से ही संभव हो पाता है फिर भी हम भरसक प्रयास करें कि अपने हाथों द्वारा जरूरत मंद व्यक्तियों को कुछ न कुछ दान मिलता रहे वैसे किसी व्यक्ति को दान करें या ना करें लेकिन गौ माता के पशु पक्षियों के हिस्से की रोटी जरूर देना चाहिए।
वस्त्र परिधान भी कुदरती देन है मनुष्य वस्त्रों के बिना भी नही रह सकता है अगर जरूरत से ज्यादा वस्त्रों की भरमार हो तो उन्हें भी गरीबों जरूरत मंद में बांट दें ताकि उनके काम आ सके ठंडी हवाओं में ऊनी कपड़ों का दान भी कर सकते हैं।
औषधि – प्रकृति से कई तरह की औषधि प्राप्त होती है जड़ी बूटियां जिन्हें घर पर ही उगाई जा सकती है और वितरण किया जा सकता है जब हम बीमार हो जाते हैं तो ढेर सारी दवाइयों का पिटारा ले आते हैं लेकिन अधिकतर दवाइयों का सेवन नही कर पाते हैं उन दवाइयों को बीमार ग्रस्त व्यक्तियों को देने से उनका फायदा हो जाता है लेकिन दवाइयाँ सही समय पर दे वरना नुकसान भी हो सकता है खुद को निरोग कर दूसरों को कष्ट न मिले ऐसा करने में भी गलत प्रभाव पड़ता है।
जीवन में अन्न ,जल , वस्त्र ,औषधि अन्य बहुत सी ऐसी वस्तुएँ पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होने पर दूसरों को वितरित कर देना चाहिए ताकि स्वयं के कर्ज से बोझमुक्त उतार लें कर्ज माफ करते हुए चलते रहें।
परमात्मा के द्वार पर जब सभी कर्मों का हिसाब किताब मांगा जाएगा तब वहाँ पर न्यायाधीश न्यायमूर्ति हमें उतनी ही सजा सुनायेंगे जितनी हमनें कर्ज लिया है और बाकी सजायें माफ़ कर दी जायेगी।
कर्मों का लेखा जोखा दस्तावेज तैयार रहता है अपने जीवन के कितने हिस्सों का दान किया गया है अच्छे कर्मों का दुर्गुणों का सत्कर्मों का मिला जुला परिणामस्वरूप फल मिलता है।
जीवन में कभी कभी कुछ मुफ्त में मिल जाया करता है जो हमनें दूसरे व्यक्ति को दी गई वस्तुएँ आदान प्रदान होती रहती है पुनः लौट कर आ जाती है लेकिन कभी जब हम गोपनीय तरीके से दान करते हैं तो वह भी गुप्त रूप से अनमोल तोहफा के रूप में उपहार स्वरूप मिल जाता है।
सभी वस्तुओं का हिस्सा बंटा हुआ रहता है यही वजह है कि जो एक हाथ से देता है उसे दोनों हाथों में वरदान मिल जाता है लेकिन कभी भी किसी वस्तुओं का गलत तरीके से दुरुपयोग करना घातक सिद्ध होता है। अति सर्वत्र वर्जयते याने किसी चीज की अति भी अच्छी नही होती है इसलिए जितनी जिस वस्तुओं की जरूरत हो उपयोग करें अन्यथा परमात्मा की लाठी में आवाज नही होती है।
अगर हमारे पास अत्यधिक मात्रा में धन दौलत ,अन्न जल वस्त्रों हो तो उचित व्यक्तियों को दान करें ताकि कुछ कर्ज से मुक्त हो सफल जीवन के भागीदार बन सकें ।
ईश्वर ने वाणी के माध्यम से भी हमें शक्ति प्रदान कर सामर्थ्य बनाया है ताकि अपनी बुद्धि से ज्ञान बांट सकें अपने इस जुबान से किसी की निंदा चुगली ना करके उसके कार्यों की प्रंशसा भी कर सकते हैं आदर भाव से सम्मान प्रगट करते हुए अपनेपन का समभाव ला सकते हैं।अपने श्रीमुख से सत्संग ,कीर्तन करते हुए
जीवन में सुख समृद्धि योजना से सफलता हासिल कर सकते हैं।
पिछले जन्मों के कर्मों का कर्जा इस जन्म में अधूरा रह जाता है वो किसी न किसी तरह से किसी भी रूप धारण कर वसूल कर लिया जाता है धन दौलत से, अन्न जल से, भोजन सामग्री से, बल बुद्धि विवेक से, औलाद के रूप धारण कर अन्य कई कारणों से अपने जीवन के कर्ज से मुक्त हो जाया करते हैं बाकी कुछ छूट जाने से वही कर्जा अगले जन्म के लिए कर्जदार बन जाता है इसलिए इसी जन्म में कर्जमुक्त होने के लिए जो हमारे पास अधिक मात्रा में उपलब्ध है उन सभी वस्तुओं , सतगुण विचारों को लोगों में बांटते चले ताकि हम कर्जदार होने से बचें ……! ! !
*जय श्री राधेय जय श्री कृष्णा *