कर्जदार हो तुम।
कर्जदार हो तुम।
घिर आई शाम अब,
घर से बाहर मत निकलो
जो नियम तुम्हारे लिए,
तुम सिर्फ उसी पर चलो।
अपने दिलकी बात कोई,
किसी से मत कहो।
होगी ख़ुशी रात कोई,
इस सोच में मत रहो।
हो लड़की तुम,
ऊँचा मत बोलो।
लड़कों से न कभी,
खुद को तोलो।
न कोई मंजिल तुम्हारी,
न कोई राह तुम्हारी।
न कोई सोच तुम्हारी,
न कोई चाह तुम्हारी।
परिवार और समाज के, कायदों को मानो।
किताबों को तो बस,
किताबों तक जानो।
अगर कहलाना शरीफ,
तो चुप रहो।
मुशीबत में रहो शांत,
शान्त रूप रहो।
लड़की का जन्म लेकर,
तुम कर्जदार हो गई।
अधिकार भूल जाओ,
तुम फ़र्जदार हो गई।
कई कर्ज़ चुकाओगी तुम
माँ-पिता,घर-परिवार के,
हैं कर्ज बहुत तुम पर,
समाज की दीवार के।
शर्म रखो हमेशा,
शर्मदार हो तुम।
मत भूलो कभी ये,
कर्ज़दार हो तुम।
प्रिया प्रिंसेस पवाँर
स्वरचित,मौलिक
सर्वाधिकर सुरक्षित
द्वारका मोड़,नई दिल्ली-78