कर्क चतुर्थी
करवा चौथ एक प्रमुख हिंदू पर्व है, जो मुख्य रूप से उत्तर भारत के राज्यों में मनाया जाता है। यह व्रत विवाहित महिलाओं द्वारा अपने पति की लंबी आयु और अच्छे स्वास्थ्य की कामना के लिए रखा जाता है। करवा चौथ कार्तिक महीने की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को आता है, जो आमतौर पर अक्टूबर या नवंबर में पड़ता है।
व्रत की विधि:
1. सुबह की तैयारी: महिलाएं सूर्योदय से पहले ‘सरगी’ नामक भोजन ग्रहण करती हैं। सरगी आमतौर पर सास द्वारा दी जाती है, जिसमें फल, मिठाई, और ड्राई फ्रूट्स होते हैं।
2. पूजा की तैयारी: दिनभर निर्जल और निराहार व्रत रखा जाता है। संध्या समय में महिलाएं पूजा के लिए तैयार होती हैं। इस दौरान वे पारंपरिक परिधान, खासकर लाल या श्रृंगार से सजी रहती हैं।
3. करवा माता की पूजा: महिलाएं सामूहिक रूप से करवा चौथ की कथा सुनती हैं और करवा माता की पूजा करती हैं। इस पूजा में मिट्टी या तांबे के करवा (घड़ा) का विशेष महत्व होता है।
4. चंद्र दर्शन: रात को चंद्रमा के उदय होने पर महिलाएं छलनी के माध्यम से चंद्रमा और फिर अपने पति का दर्शन करती हैं। इसके बाद पति के हाथों से पानी पीकर व्रत का पारण करती हैं।
करवा चौथ की कथा:
व्रत के साथ जुड़ी कई कहानियाँ प्रचलित हैं, जिनमें सावित्री, वीरवती, और सत्यवान की कहानियाँ प्रमुख हैं। इन कहानियों का सार यही है कि व्रत की पवित्रता और सच्ची निष्ठा से पतियों की लंबी उम्र की कामना पूरी होती है।
इस पर्व में पति-पत्नी के रिश्ते को मजबूती देने के साथ-साथ परिवार और संस्कृति के प्रति सम्मान का भाव भी व्यक्त होता है।
कलम घिसाई