करे कौन हिफाजत अब मेरी
करे कौन हिफाजत अब मेरी
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करे कौन हिफाजत अब मेरी।
सुनके आयेगा कौन सदा मेरी।। (आवाज):
जब भी बाहर निकलू घर से,हर एक नजर टिक जाये
अस्मत के भूखे है सारे, कैसे दामन ये बच पाये
फिर घर में ही घुट-घुट मर जाये,यूँ लगे काल की फेरी
करे कौन हिफाजत अब मेरी।
कभी बीच सड़क पर मिल जाऊँ,आ बैठ तुझे घर पहुचाऊँ
चलते चलते अस्मत लुटवाऊँ ,बैठे-बैठे अश्क बहाऊँ
छोङ मुझे दो जिन्दा अब तो ,पर एक सुने ना मेरी
करे कौन हिफाजत अब मेरी
छोड़ पिता की बगिया एक ,दिन मैं ससुराल में जाऊँ
करें तमन्ना वो सब इतनी, गाड़ी भर दहेज मैं लाऊँ
पर जब उनके अरमां बिखराऊं, तो कद्र करें ना मेरी
करे कौन हिफाजत अब मेरी
जालिम जब जिद पर आ जायें, पेट्रोल से मुझे नहलायें,
जिन्दा ही को आग लगायें, हँस-हँस हंस कर वो मुझे जलायें,
कौन मुझे आकर छुड़वाये,कैसे जान बचे ये मेरी।
करे कौन हिफाजत अब मेरी।।
करे कौन हिफाजत अब मेरी।
सुनके आयेगा कौन सदा मेरी।।
शायर देव मेहरानियाँ
शायर, कवि व गीतकार
मोबाइल _7891640945
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