करुणामयि हृदय तुम्हारा।
देख दुःख में संसार को,
नैनो से बहता जाए,
आँसू की अमृतधारा,
ऐसा करुणामयि हृदय तुम्हारा।….(१)
लेकर पितु से आशीष वचन,
बुद्ध त्याग चलें राज भवन,
संसार को दुःख से उबारने,
ऐसा करुणामयि हृदय तुम्हारा।….(२)
वैराग्य जगा मन में तुम्हारे,
जीने को जीवन सन्यासी,
पाने को इस भंवर से मुक्ति,
ऐसा करुणामयि हृदय तुम्हारा।….(३)
ध्यान लगा के बैठा वन में,
शत् शत् है उसको प्रणाम,
भूख प्यास न जानी तुमने,
ऐसा करुणामयि हृदय तुम्हारा।…..(४)
रचनाकार-
बुद्ध प्रकाश,
मौदहा हमीरपुर।