करिए नष्ट समूल….( छंद दोहा)
काले बादल छा चुके, आरक्षण चहुँ ओर.
दे अयोग्य को नौकरी, करे देश कमजोर..
इसे पालते स्वार्थी, बँटता नित्य समाज.
लाभ सबल ही ले रहे, निर्धन रोते आज..
मूढ़ मलाई खा रहे, कुण्ठित योग्य समाज.
दैत्य दबाये दांत में, प्रतिभा भक्षित आज..
बँटें नहीं, मिलकर चलें, वोट बने हथियार.
आरक्षण पर क्रांति हो, नष्ट करें आधार..
श्वेत श्वान हैं भौंकते, सिद्ध हो रहा स्वार्थ.
गांडीव को धार कर, लक्ष्य भेदिए पार्थ..
सिंह जगें, फरसा उठे, अस्त्र लेखनी साथ.
हर-हर गूंजे, काट दें, आरक्षण का माथ..
राजनीति का है प्रसव, तभी रहा फल फूल.
आरक्षण अभिशाप है, करिए नष्ट समूल..
–इंजी० अम्बरीष श्रीवास्तव ‘अम्बर’