करार
जाने कैसे करार ये दुनियां पा
जाती है,
कहीं लुटती है बिलकिस तो
अंकिता मर जाती है,
समझे कौन की तबाह ज़िंदगी
हो जाती है,
अय्याशों पर नकेल ना कसी
जाती है,
हिम्मत उनकी तभी तो बढ़
जाती है,
एक हादसा समझ दुनियां तो
भूल जाती है,
करार छिनता किसी का जब
अस्मत लुट जाती है,
कहानी बर्बादियों की शुरू हो
जाती है,
दुनियां मोमबत्तियां जला फ़र्ज़
अपना निभाती है,
सियासत कुछ दिनों के लिए तो
गर्म हो जाती है,
फिर से दामिनी कोई हवस की
आग में जल जाती है,
ये आग ना बुझेगी शायद ये तो
ओर दहकती जाती है,
थोड़ी सी हमदर्दी जता दुनियां
चैन से सो जाती है,
ये बहरी दुनियां बात अपने पर
आये तभी चिल्लाती है,
बेटी किसी ओर की क्यों अपनी
सी नज़र ना आती है,
बद्दुआओं से डरो जो अर्श चीर
कर सज़ा दे जाती है,
करनी अपनी हर हाल में आगे
आ जाती है।
सीमा शर्मा