करवाचौथ
तांटक छंद – करवाचौथ
★★★★★★★★★★
कर श्रृंगार करवा मैय्या के,
पग में शीश झुकाती है।
अपने पति के हित के कारण,
करवा चौथ मनाती है।
★★★★★★★★★★
स्वच्छ नवल परिधान पहनकर,
सजती बिंदिया काजल से।
सुंदरता भरती कुंतल में,
गहरे काले बादल से।
लाल चुनरी ओढ़ सुहागन,
कंगना भी खनकाती है।
अनुपम यह श्रृंगार सुखद ही,
घर बगिया महकाती है।
नारी होने का इस जग में,
निज कर्तव्य निभाती है।
अपने पति के हित के कारण,
करवा चौथ मनाती है।
★★★★★★★★★★
रहते है निर्जला सदा ही,
जब इस व्रत को करती है।
पावन पुजन कर माता की,
उम्र पति में भरती है।
अपने घर का द्वार सजाती,
रंगोली की लाली में।
गरम गरम पकवान बनाकर,
भर देती है थाली में।
अक्षत कुमकुम रोली चंदन,
दीपक थाल सजाती है।
अपने पति के हित के कारण,
करवा चौथ मनाती है।
★★★★★★★★★★★
स्वरचित©®
डिजेन्द्र कुर्रे, “कोहिनूर”
छत्तीसगढ़(भारत)