” करत करत अभ्यास ते जड़मति होत सुजान “
डॉ लक्ष्मण झा “परिमल ”
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आधुनिक यंत्रों के आविष्कारों ने मनो हमारे अंगों में पंख लगा दिये !…. क्षितिजों को नापना आसन हो गया ! …..हम इसके सहारे विश्व के एक छोर से दूसरी छोर तक पलक झपकते पहुँच जाते हैं !….. अब हम सीमित परिधिओं के परिन्दें ना रहे !….. स्वक्षंद और उन्मुक्त होके हम सम्पूर्ण विश्व को अपनी आगोश में भरने की क्षमता रखने लगे ! …..इन यंत्रों की विभिन्य विधाओं ने हमें अपनी ओर आकर्षित किया !.
किसीने फेसबुक के रंगमंचों को सजाया !……………… किसीने व्हात्सप्प अपनाया !
अपनी अभिव्यक्तियों को मैसेंजर पर अंकित किया ! …..विडियो कालिंग ,……स्कय्प,…..विश्व समाचारों का दर्शन ,…….मनोरंजन की दुनियां से जुड़ना इत्यादि को लोगों ने गले लगाया !….. इन सारी विधाओं के चक्रव्यूह को भेदने की कला आज के ….’अभिमन्यु “……के लिए असंभव नहीं परन्तु ……….” भीष्मपितामह ‘ …..जैसे बुजुर्गों के लिए यह चक्रव्यूह भेदना कुछ कठिन लगता है …. पर असंभव नहीं !
सिखने की चाह और सतत अभ्यास हम बुजुर्गों को भी धनुर्धर बना देता है ! हम क्यों ना ‘अभिमन्यु ‘ हों या ‘ भीष्मपितामह ‘ चक्रव्यूह भेदना ही लक्ष्य नहीं होना चाहिए अपितु उससे निकल बाहर आना ही हमारी राणकौशलता मानी जाएगी !
हम मान लें कि आप इन यंत्रों के सफल खिलाडी नहीं हैं ! पर आप युध्य क्षेत्र में पहुँच युध्य की बारीकियां तो आपको समझनी होगी ! हम कभी -कभी अपने प्रोफाइल में अपनी तस्वीर ही देना भूल जाते हैं !…… अपने बारे में लोगों को हम अनजान रखते हैं !…… कोई प्यार से आपको स्नेह भरा पत्र लिखता है तो उसे नजर अंदाज कर देते हैं !…..
शालीनता ,…..शिष्टाचार ,….माधुर्यता …और ….स्नेह के अस्त्रों को गांडीव में रखे रहते हैं और हमें यह अभिलाषा रहती है कि हम एक कुशल योद्धा बन जाएँ !
कुशल योद्धा बनने के लिए हमें सदेव प्रयासरत रहना होगा अन्यथा हमें शायद ही अधिक समय तक लोग अपनी बटालियन में रख सकेंगे !
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डॉ लक्ष्मण झा “परिमल ”
साउंड हेल्थ क्लिनिक
एस ० पी ० कॉलेज रोड
दुमका