करते रहे हो तुम शक हम पर
करते रहे हो तुम शक हम पर, तुमसे बेशक क्यों रहे।
क्यों समझे हम तुमको पवित्र, तुमसे वफ़ा क्यों रहे।।
करते रहे हो तुम शक—————।।
सच बयां करती है हमको,यह हरकतें चाल तुम्हारी।
तुमको नहीं जब शर्म हमारी,तुमपे फिदा क्यों रहे।।
करते रहे हो तुम शक—————-।।
हमसे हमेशा यह बहाना, छोड़ो हमको है घर जाना।
करीब हमारे जब तुम नहीं हो,दीवाने तेरे क्यों रहे।।
करते रहे हो तुम शक—————।।
हमको मिला है खत कोई,जिसपे लिखा है साफ यह।
ख्वाब तुम्हारा हम नहीं है, हम पास तुम्हारे क्यों रहे।।
करते रहे हो तुम शक—————-।।
तुमसे मिला है हमको क्या, जिसको कहे हम अहसान।
पास हमारे इसका सबूत है, तुमसे दबकर हम क्यों रहे।।
करते रहे हो तुम शक—————–।।
शिक्षक एवं साहित्यकार-
गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)