करता रहूँ मै भी दीन दुखियों की सेवा।
पाखंड दोष जो मुझे घेरे पड़े है,
आँखे खोल मेरी, मुझ पे दया ही करना,
ज्ञान तुम देना मुझे ऐसा भगवन्,
जिस ज्ञान से भ्रम मेरा दूर हो भगवन्, ,
सरण में बुद्ध तथागत मुझे भी ले लो,
करता रहूँ मै भी दीन दुखियों की सेवा।
सताए हुए है सदियों से यहाँ पर,
दुखो से है पीड़ित लाखों करोड़ो,
तन से न सुख है,ना मन है सुखी,
संसार में सब तेरे बिन है दुखी,
ज्ञान धम्म का मुझे भी अब देना,
करता रहूँ मै भी दीन दुखियों की सेवा।
संघ में तेरे है हजारों लाखों सेवक,
समय की तरह बढ़ते रहते है केवल,
मानव मानवता को देते है करुणा,
करते है करुणा, करुणा के सागर,
संघ में अपने बना लो मुझको सेवक,
करता रहूँ मै भी दीन दुखियों की सेवा।
गीतकार-
बुद्ध प्रकाश,
मौदहा हमीरपुर।