करता यही हूँ कामना माँ
हरिगीतिका छंद.. वंदना
करता यही हूँ कामना माँ, ज्ञान का भण्डार दो।
निर्मल रहे हर भावना माँ, सत्य का आधार दो।।
अन्तर प्रकाशित हो सवेरा, ही सवेरा मन लगे।
तम का बसेरा नष्ट हो जग, चेतना मानव जगे।।
विनती यही हे शारदे माँ, भाव को विस्तार दो।
करता यही हूँ कामना माँ, ज्ञान का भण्डार दो।।
नव सर्जना हो अर्चना छल, बंध कटुता दूर हो।
उल्लास हो उत्कर्ष गौरव, द्वेष का मद चूर हो।।
वंदन यही दर कोटि है माँ, लोभ से निस्तार दो।
करता यही हूँ कामना माँ, ज्ञान का भण्डार दो।।
हर राग में अनुराग मंगल, भव्यता का गान हो।
पावन धरा सन्मार्ग श्रद्धा, साधना का मान हो।।
नव ताल वीणावादिनी माँ, तार मन झंकार दो।
करता यही हूँ कामना माँ, ज्ञान का भण्डार दो।।
चमके सुयश से भाल देना, वर हमारे देश को।
धारण करें हर जन हमेशा, धर्म के संदेश को।।
हे बुद्धि वैभव दायिनी माँ, कर्म का उपहार दो।
करता यही हूँ कामना माँ, ज्ञान का भण्डार दो।।
करता यही हूँ कामना माँ, ज्ञान का भण्डार दो।
निर्मल रहे हर भावना माँ, सत्य का आधार दो।।
डाॅ. राजेन्द्र सिंह ‘राही’
(बस्ती उ. प्र.)