करतारो की अंतिम यात्रा
करतारो की अंतिम यात्रा
महिलाओं के रोने की आवाज आ रही थी| राधा ने अपने पति बंसी को बताया कि पड़ौसी भजनलाल की मां करतारो का देहांत हो गया| बंसी बोला, “आज सुबह तो अच्छी-भली बैठी थी|”
राधा ने कहा, “दोपहर के एक बजे के करीब माता करतारो ने अंतिम सांस लिया|”
बंसी ने कहा, “जब अंतिम संस्कार की तैयारी हो जाए तो मुझे बताना|”
राधा बोली, “माता करतारो की बेटियों के आने के बाद ही संस्कार होगा|”
उबासी लेता हुआ बंसी बोला, “फिर तो बहुत समय लगेगा| इतने लंबे समय तक कौन बैठेगा? रिश्तेदारों के आते आते शाम हो जाएगी| नींद आ रही है| तब तक मैं सो लूं|”
यह कह कर, बंसी कूलर चलाकर सो गया| उसकी पत्नी भजनलाल के घर चली गई| बंसी दो बजे सो कर, पांच बजे उठ गया| राधा ने आ कर बताया कि शायद संस्कार की तैयारी चल रही है| बंसी ने मुंह धो कर नींद का आलस दूर करने का प्रयास किया| उसके बाद चल पड़ा, पड़ौसी भजनलाल के घर की तरफ| जहाँ पर बंसी की तरह और भी अनेक व्यक्ति खड़े थे| सभी जानने का प्रयास कर रहे थे कि कौन-कौन आना बाकी है| भजनलाल के एक रिश्तेदार ने बताया कि बाकी तो सब आ चुके हैं| भजनलाल की छोटी बहन सुशीला आनी है| अभी फोन पर बात हुई है| दस-पंद्रह मिनट में पहुंचने ही वाले हैं| एक ने कहा आधा-पौना घंटा तो आने में और लगेगा| फोन पर तो ज्यादातर झूठ ही बोलते हैं| वृद्धा करतारो की अंतिम यात्रा में शामिल होने आए सभी लोग परेशान थे| सभी सोच रहे थे| कब आएंगे रिश्तेदार? कब शमशान पहुंचेंगे? कब औपचारिकताओं से पीछा छूटेगा?
सभी कह रहे थे, “जल्दी करो, दिन छिपने से पहले-पहले होता है अंतिम संस्कार| सभी अपनी-अपनी बेचैनी छुपा कर, तरह-तरह के तर्क देकर, अंतिम संस्कार जल्दी करने की कह रहे थे| पहले तरह-तरह की बातें चलीं| उसके बाद हंसी-मजाक पर आ गए| अब किसी को लग ही नहीं रहा था कि ऐसी हंसी-ठिठोली वो लोग कर रहे थे जो अंतिम संस्कार में शामिल होने आए हैं| चर्चाएं चलीं किसकी पत्नी, कितनी सुंदर है? कौन-कौन अपनी पत्नी से डरता है| फलां का तलाक क्यों हुआ? फलां शारीरिक तौर पर कमजोर है, इसलिए उसकी पत्नी तलाक ले गई| मातम करने वालों की संवेदनहीनता को देखकर, संवेदनहीनता स्वयं पानी-पानी थी|
एक ने कहा, “भजनलाल का भाई किशनलाल दिखाई नहीं दे रहा|”
तो दूसरे ने कहा, “भजनलाल से उसकी कब बनती है? दोनों भाई एक-दूसरे के धुर विरोधी हैं|”
एक ने चुटकी ली कि भाई-भाई की कभी नहीं बिगड़ती अगर बीच के लोग अपनी करामात न दिखाएं तो| सबको पता है, सीख तो पत्थर को भी फाड़ देती है| एक वो भी समय था, जब भजनलाल और किशनलाल दोनों भाइयों के प्रेम-प्यार की मिशाल दी जाती थी| दोनों में अत्यधिक स्नेह था| जबसे अनाम सिंह का भजनलाल के साथ उठना-बैठना हुआ है| तब से दोनों भाइयों के बीच की दूरियां बढती ही गई| खैर कुछ भी हो इस अवसर पर तो गिले-शिकवे एक तरफ रखकर, किशनलाल ने आना ही चाहिए था| एक ने कहा कि हमने भी तो कोई प्रयास नहीं किया| अगर हम प्रयास करें तो, शायद आज दोनों भाइयों के बीच की दूरी को पाटा जा सकता था| यही गमी-खुशी के अवसर टूटे हुए परिवारों को जोड़ देते हैं| उसी भीड़ में खड़ा राजकुमार नाम का अधेड़ व्यक्ति, जिसके चेहरे से व्यवहारिकता और जीवन का अनुभव झलक रहा था|
राजकुमार ने कहा, “मैं कुछ प्रयास करता हूँ|”
कहकर भीड़ से निकल कर किशनलाल के घर की तरफ चल पड़ा| किशनलाल का घर, भजनलाल के, घर के बगल में ही है| सब के मन में अवधारणा है कि दोनों भाई किसी भी कीमत पर एक नहीं हो सकते| थोड़ी देर बाद राजकुमार, किशनलाल के घर से निकला| सभी ने उत्सुकतावश उसे घेर लिया और जाना क्या रहा?
राजकुमार ने कहा, “ऐसी कोई बात नहीं कि किशनलाल न आए, वो आएगा| उसका कहना है की उसके घर भी उसके मेहमान आए हुए हैं| वह उनके चाय-पानी से निवृत होकर आएगा|”
राजकुमार ये बातें कर ही रहा था| माता करतारो की अर्थी भजनलाल के घर से निकली| सभी लोग परम्परानुसार पीछे-पीछे चल पड़े| किशनलाल भी अपने घर से निकल शवयात्रा में शामिल हो गया| जब उसने अपनी मां की अर्थी को कंधा देना चाहा तो भजनलाल के बेटे ने विरोध किया| राजकुमार जैसे व्यक्तियों ने बीच बचाव करवाया|
माता करतारो को अपने बेटों पर पूरा गुमान होता था| वह कहती नहीं थकती थी कि उसके बेटों की जोड़ी नल-नील जैसी है| दोनों भाइयों में अगाध प्रेम था| दोनों एक ही थाली में खाते थे| वे एक-दूसरे बिन पल भर भी नहीं रहते थे| इकट्ठे खेलना, इकट्ठे पढ़ना, इकट्ठे शरारत करना| दोनों में नाखून-मांस सा मेल था| लेकिन अनामसिंह ने भजनलाल पर जाने क्या मंत्र मारा? दोनों भाई एक-दूसरे के धुर विरोधी हो गए| माता करतारो, दोनों को एकजुट देखने के लिए तड़पती हुई चल बसी| वो दोनों को एक साथ देखना चहती थी| जो उसके जीते जी संभव नहीं हो सका| हां अंतिम यात्रा में दोनों भाई कंधा देने के लिए, एक-दूसरे के करीब जरूर आए| लेकिन यहां भी उनके बीच ईर्ष्या व नफरत की मोटी दीवार थी| इस दीवार को मां की मृत्यु भी नहीं ढहा पाई| अनेक उदाहरण हैं, ऐसी परिस्थितियों में टूटे हुए परिवार जुड़े हैं| लेकिन भजनलाल व किशनलाल दोनों ही अपनी जगह से टस से मस नहीं हुए| बात बात को नाक का सवाल बनाते रहे| एक समय वो भी था, जब एक को जरा सी चोट लगती तो दूसरा भी रो पड़ता था| आज इतनी बड़ी चोट खा कर भी वे दुख सांझा नहीं कर पा रहे| इसे अपना-अपना दुख मान रहे थे|
माता करतारो का पार्थिव शरीर लकड़ियों से बनी चिता पर सुशोभित किया गया| मां के मुंह में देशी घी जबरन डाला गया| जीते जी तो माता लम्बे समय से घी नहीं खा सकी थी| डॉक्टरों ने बंद करवा रखा था| लेकिन आज पूरा कनस्तर घी माता पर उडेल दिया| क्रियाक्रम के दौरान सभी लोग अपने मन माफिक दिशा-निर्देश दे रहे थे| उन्हें चाहे कोई सुन रहा था या नहीं| सभी अपने अनुभवी होने का प्रमाण पत्र लिए घूम रहे थे| दोनों भाइयों ने मिलकर मुखाग्नि दी| मुखाग्नि देते समय आगे-आगे भजनलाल, पीछे-पीछे किशनलाल बड़े सुंदर लग रहे थे| मानो वे बचपन में इकट्ठे खेले, किसी खेल का अभिनय कर रहे हैं| इकट्ठे मुखाग्नि देने की तरह, बाकी जीवन भी एक-दूसरे का सहयोग करते हुए, व्यतीत करते तो कितना सुंदर होता| लेकिन यह सहयोग अंतिम संस्कार तक ही सीमित रहा|
अंतिम संस्कार के बाद भजनलाल के रिश्तेदार, भजनलाल के घर जा बैठे| किशनलाल के रिश्तेदार, किशनलाल के घर जा बैठे| कुछ सांझे रिश्तेदार थे, जो तय नहीं कर पाए किधर बैठना है| वे अपनी-अपनी गाड़ी में जा बैठे और अपने-अपने घर की और रवाना हो गए| भजनलाल के घर सारी व्यवस्था अनामसिंह ने संभाल ली| किशनलाल के घर सारी व्यवस्था उसके साले राजेश ने संभाल ली| तेरह दिन दोनों तरफ, उनके अपने-अपने मित्र-प्यारे, सगे-संबंधी, रिश्तेदार, सहकर्मी व मिलने वाले मातम पुरषी करने आए| भजनलाल के घर अनामसिंह सबको बता रहा था| 28 तारिख को, शहर की फलां धर्मशाला में माता करतारो की याद में कीर्तन रखा गया है| जहाँ हमारे गुरु जी पूरी संगत को आशीर्वाद दे कर व प्रवचन सुनाकर पुन्य के भागी बनाएंगे| गुरु ने व्यस्त समय के बावजूद हमारे लिए समय निकाला है| हम बड़भागी हैं| गुरु जी का समय बहुत कीमती है| इनके यहाँ तो बड़े-बड़े नेता, विधायक, सांसद, मंत्री व प्रशासनिक अधिकारी, मिलने के लिए लाइन में खड़े रहते हैं| हम धन्य हैं, जो खुद-खुदा चलकर, हमारे पास आ रहे हैं| अनामसिंह बड़े भावुक व रोचक अंदाज में कीर्तन व गुरु जी की महिमा का गुणगान कर रहा था| उधर किशनलाल का साला राजेश मौर्चा संभाले हुए था| जो कह रहा था| माता जी की आत्मिक शांति के लिए 28 तारिख को यहाँ घर पर ही गरुड़ पुराण का पाठ रखा हुआ है| पहुंचने का कष्ट जरूर करें|
करते कराते 28 तारिख आ गई| दोनों भाइयों ने भव्य मृत्युभोज के आयोजन किए| भजनलाल के मित्र, रिश्तेदार, सहकर्मी व गुरभाई धर्मशाला में जा पहुंचे, सबने स्वादिष्ट भोजन का आनंद लिया| कीर्तन सुना| गुरु जी को नगद भेंटस्वरूप रुपये भी चढाए| गुरु जी ने भी उसी ढ़ंग से आशीर्वाद दिया| जितने का नोट चढाया गया| स्टेज के नीचे माता करतारो का फोटो फूल माला डालकर रखा हुआ था| गुरु जी ने प्रवचन किए| भजनलाल को योद्धा का दर्जा दिया और बताया कि भजनलाल धन्य है, जिसने माता की आत्मिक शांति के लिए आश्रम अनुसार आयोजन किया| इस आयोजन के लिए, अपने कुल की, परिवार की, सभी परम्परा तोड़ दी| यहाँ तक कि सगा मां जाया भाई भी छोड़ना मंजूर किया| गुरु जी कीर्तन उपरान्त सारी दान-राशी व उपहार लेकर, अपने किलेनुमा आश्रम की ओर प्रस्थान कर गए| संगत भी कीर्तन सुनकर अपने-अपने घर चली गई|
उधर किशनलाल ने अपने घर कथावाचक बैठाए, जिन्होंने किसी के न समझ में आने वाली भाषा में गरुड़ पुराण का पाठ किया| बेशक किसी को कुछ समझ न आया हो| परन्तु लाउडस्पीकर की आवाज पूरी कॉलोनी में सुनी जा सकती थी|
कथावाचक ने बताया, “किशनलाल धर्म परायण व्यक्ति है| जिसने सनातन परम्परा अनुसार अपनी माता जी की आत्मिक शांति के लिए गरुड़ पुराण का पाठ करवाया| किशनलाल ने अपना धर्म, कुल की मर्यादा, कुल की परम्परा को नहीं छोड़ा, अपने मां जाए माई को छोड़ना स्वीकार किया| कथावाचक के आसन के पास यहाँ भी माता करतारो का फोटो फूल-माला डालकर रखा हुआ था| फोटो में माता करतारो की आंखें दोनों भाइयों को एक साथ देखना चाहती थी| लेकिन परिस्थितियों और व्यवस्था ने उन्हें एक नहीं होने दिया|
-विनोद सिल्ला©