करके घर की फ़िक्र तब, पंछी भरे उड़ान
करके घर की फ़िक्र तब, पंछी भरे उड़ान
कौन सुने परदेश में, हम ठहरे अन्जान
हम ठहरे अन्जान, ज़ुबां ना समझा कोई
कोई रोय न संग, साथ ना हंसता कोई
महावीर कविराय, फ़ायदा क्या यूँ मरके
जाय बसे परदेश, कष्टमय जीवन करके
– महावीर उत्तरांचली