कम बोलें, मीठा बोलें
एक आम कहावत है कि अधिकता हर चीज की नुकसान करती है,फिर भला अधिक बोलना इससे अछूता कैसे रह सकता है।हम सबको अपने आप की वाणी पर संयम रखना है,जितनी जरूरत हो उतना ही बोलें,बात को बेवजह खींचने से बचना है।जो भी बोलें,सोच समझकर बोलें,मीठा बोलें,संतुलित बोलें,समयानुसार बोलें, कम और मीठे मधुर शब्दों में बोलें।शहद मिश्रित शब्दरस की वाणी वर्षा करें।अधिक और बेवजह बोलने से हमारी ऊर्जा व्यर्थं होती है,विवाद और तनाव के अलावा बोलने की भाषा, शैली और शब्दोद्गार बड़े तनावों, विवादों और संघर्ष तक को जन्म दे देते हैं। वहीं कम और मीठे मधुर स्वर शब्दोद्गार बड़ी बड़ी समस्याओं के समाधान में भी सहायक होते हैं।हमारे शब्दोद्गार हमारे परिवार, आस पड़ोस, समाज और संसार के माहौल को भी प्रभावित करते हैं।यही नहीं हमारे निजी, पारिवारिक, सामाजिक, व्यवहारिक जीवन में भी हमारी बोली, वाणी अभूतपूर्व परिवर्तन का कारक भी बनती है।
सच्चाई तो यह है कि हमें अपनी भूख,परिवार ,समाज, लाभ हानि की बहुत चिंता रहती है,ऐसे में यदि हम अपनी बोली की धारा को मीठी नदी की धारा सरीखे बनाने का सतत् प्रयास करें तो हमारी बहुत सी चिंताएं बिना किसी श्रम के ही समाप्त हो जायेंगी और हमारी मानसिक शक्ति, शारीरिक ऊर्जा सुरक्षित रह सकेगी।जिसका लाभ स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से भी परिलक्षित हो सकेगा।
वाणी में अपनों को पराया और परायों को अपना बनाने की शक्ति है।कहा भी जाता है कि हमारी बोली वाणी हमें सम्मान भी दिलाती है,अपमान भी,गुड़ भी खिलाती है और मार भी।
तो आइए आज से हम,आप, सभी कम बोलो,मीठा बोलो के विभिन्न पहलुओं पर अपनी भावोभिव्यक्ति , शब्दाभाव ,चिंतन, मनन को सकारात्मक भाव को प्रदर्शित करते हुए कुछ विशेष प्रयास करें।अपने मीठे रसीले शब्दबाणों से समाज को मिठास फैलाएं, कुछ ऐसा माहौल बनायें, जिससे हर किसी को लाभ हो,दिशा मिले,और आपका दायित्व बोध भी रेखांकित हो सके।आपको निश्चित ही खुद पर गर्व होगा।
आइए हम सब मिलकर अपनी मीठी वाणी से सकारात्मक और खुशहाली का आधार बनाएं और अपनी वाणी/लेखनी/व्यवहार में प्रचारित/संचारित/प्रकाशित कर साथ साथ में हँसें, मुस्कुरायें, खिलखिलाएँ। संसार को अपनी वाणी से खुशहाली के दायरे में लायें।
● सुधीर श्रीवास्तव