कमौआ पूतोह
जिस अर्जित संपत्ति से सुख-सुविधा की प्राप्ति न हो वैसी इकठ्ठी संपति बेकार है।
कमला देवी आज बहुत उदास बैठी थी—बिलकुल अकेले| घर के पिछुती में एकदम एकोत जगह पर| एकदम अलग। एक ईंट को पीढा बनाकर । अपने हाथ की तलहथी को कपनुमा बनाकर उसी में अपनी ठुड्डी को डालकर गंभीर मुद्रा में डूबी हुई। रुआंसा चेहरा| अंदर-अन्दर रुलाई। बाहर एक अत्यंत वीभत्स दृश्य| अपने किये का परिणाम हाथों – हाथ| करे भी तो क्या करे बेचारी? अब जाकर कमला देवी किससे कहे कि कितना उछल-उछल कर सुशांत की शादी एक नौकरी वाली लडकी से करवाने के लिए एड़ी-चोटी का पसीना एक कर दी थी। न मालुम उस समय नौकरीवाली लडकी से अपने पुत्र सुशांत की शादी के पक्ष मे कितना फ़ायदा गिना रही थी। अब अपनी व्यथा किससे कहे और कौन सुनेगा उसकी व्यथा को ? अगल-बगल के पड़ोसी तो पहले ही कमला को चेता चुके थे। उसकी गोतनी तो यहाँ तक कह दी थी – “दीदी, आप अपने साथ-साथ बाबू का भी उस लडकी से शादी की बात पक्की करके सुख शांति में आग लगा रही हो| मेरी बुआ की शादी उसी गाँव में है| वह उसके बारे में बहुत कुछ बतायी है।” गोतनी की बात का जबाब कमला देवी तत्क्षण दी थी-“ हर गाँव में कुछ लोग शादी-विवाह काटने वाले लोग होते हैं जिनका मुख्य काम शादी-विवाह को काटना होता है|”
शादी के बाद घर आते सुरभी अपनी तरह अपना जीवन जीने लगी थी। उस दिन छुट्टी का दिन था| पति के लाख समझाने के बाबजूद वह घर के किसी काम में हाथ नहीं बटाई सुरभी ने | पलंग पर सोयी रही और बहाना वही- समूचे देह मे दर्द और दर्द से माथा का फटना| सुशांत को कुछ कहने का मतलब दिनभर का कचर-कचर। अपनी गोतनी की बात भक्-भक् आज याद आ रही थी।कमला देवी सुरभी को कुछ कहे यह मजाल कहाँ ? चुपके-चुपके रोने के सिवा और कोई चारा नहीं था कमला देवी के पास। वह क्या जानती थी की जिस बहु को इतना लोगों से पूछताछ के घर में लाई वही आज सबको नाक से पानी पिला रही है।अप्पन हारल कौन किससे कहता है?
कमला के पति एक नंबर के शराबी थे फिरभी उन्होंने भी कहा था- “मैं अपनी नौकरी के दरम्यान बहुतों की शादी देख चुका हूँ। पति-पत्नी दोनों वर्किंग हो जाए,वह घर चौपट हो जाता है|” लेकिन माँ-बेटा उनको पियक्कड कहकर उनकी बात को सिरे से खारिज कर दिए थे।”
कौन सुने धरम के गाथा |
सुरेश लाल मिलिटरी के मेजर पद से रिटायर करके आये थे। पूरे भारतवर्ष के बड़े-बड़े जगहों पर उनका पोस्टिंग हुआ था। जहाँ भी गए उनका नाम खाने-पीने वाले पदाधिकारी की सूची में अंकित होते आया। जब गाँव आए तो यहाँ भी उनका रवैया नहीं बदला। दारू से उनको बेपनाह मुहब्बत थी| उनके जीवन में नशीले पदार्थ अहम् भूमिका में था| अंगरेजी शराब की अनुपलब्धता होने पर देशी से भी काम चला लेने वाले व्यक्ति थे | इतना से भी काम नहीं चलता तो अकाशी भी ले लेते थे। जाड़ा हो या गरमी, सुखाड हो या बरसात चार बजे गाँव के बाजार पर चले जाते, वहाँ से कचहरी प्याजुआ लाते और छ: बजे से ही दारु लेकर बैठ जाते थे।शराब की कमी नहीं होती थी| रिटायर होने के बाद भी प्रति माह कैंटीन से कुछ सामान उठायें या न उठायें, शराब जरुर उठाते थे| दिन मे दस-ग्यारह बजे ताड़ी मन भर पीते थे और गाँव के कुछ निकम्मों के बीच बैठकर तास के पत्ती को पटकते थे। कमला देवी उनके इस चाल-चलन से जल-भून जाती थी और हमेशा सोचती थी –“ मैं पढ़ी लिखी नहीं हूँ इसलिए तो इनका इतना बर्दास्त करती हूँ, नहीं तो — मेरे साथ जो हुआ सो हुआ मैं अपने सुशांत के साथ ऐसा नहीं होने दूँगी । पढ़ी-लिखी बहू समझदार होती है, घर और बाहर दोनों को आवश्यकता पडने पर संभाल लेती है।”
सुरभी की शादी जब सुशांत से पक्की हुई थी तो सुरभी बी.ए. करके प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी कर रही थी। कुछ परीक्षा में सम्मिलित हो भी चुकी थी। सुशांत का अभी-अभी अफसर की नौकरी लगी थी इसलिए उसका भी पढ़ी-लिखी लडकी पहली प्राथमिक शर्त थी। सुरभी के पिता, राम नाथ लाल, भी अपनी लडकी को पढाने-लिखाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़े थे इसलिए उन्हें अपनी बेटी पर नाज था| सुरभी की माँ भी नौकरी करती थी। हालाकि सुरभी के पिता पढ़े-लिखे अपनी पत्नी से बहुत ज्यादा पढ़े- लिखे थे फिरभी उनको सरकारी नौकरी न लग पायी थी । हार-धार कर राम नाथ लाल होमियोपैथी के मटेरिया मेडिका का अध्ययन किये और ईक्का-दुक्का को दवा देकर अपना सिक्का जमा लिए थे।भगवान भी उनकी सुन लिए थे। किसी तरह डॉक्टर का फर्जी डिग्री लेने में सफल हो गए| इलाके में एक अच्छे डॉक्टर के रूप में एन-केन-प्रकारेन स्थापित हो गए।
राम नाथ लाल को केवल चार बेटियाँ ही थी। चारों मे सबसे बड़ी सुरभी ही थी इसलिए राम नाथ लाल को इसी शादी में सब तजुर्बा हासिल करना था। बहुत जगह भाग्य आजमाने के बाद उन्होंने सुरेश लाल के घर की तरफ कदम बढ़ाया। बाप को पेंसन मिलता था, सुशांत की भी नौकरी अच्छी थी। उसको नौकरी वैसे पद पर लगी थी जिसमे उपरी आमदनी बेसुमार थी| बड़े और डिफेन्स के लोग शराब पीते ही हैं।यह कौन बहुत बड़ी बात है? सुशांत अकेला भाई था| दो बहनें थी लेकिन दोनों विवाहित।जर-जमीन तो नहीं के बराबर थी लेकिन खाता-पीता परिवार था।घर और वर दोनों अच्छा लगा था। लड़कीवाले को धनीमनी घर भाए लड़का वाले को सुंदर-सुशील कन्या ।उसमे भी यदि कमाऊ हो तो सोना में सुगंध। फिर क्या था उस मिलिटरी अफसर के यहाँ अपनी बड़ी बेटी, सुरभी, की शादी की बात पक्की कर ली थी रामनाथ लाल ने।
सुरभी और सुशांत के बीच शादी- विवाह की बातचीत चल रही थी| इसी बीच सुरभी को सरकारी मुहकमे में नौकरी की चिठ्ठी आयी। राम नाथ लाल अपनी बेटी की नौकरी से काफी प्रसन्न हुए। राम नाथ लाल खुद सुरेश लाल के यहाँ जाकर इस बात की तहकीकात कर लिए थे कि शादी के बाद सुरभी नौकरी करेगी या नहीं। सुरेश लाल न पर अड़े थे और कमला देवी हाँ पर अड़ी थी। सुशांत बीच बचाव करते हुए बोला- “ पापा, सुरभी इतनी पढ़ी-लिखी है तो नौकरी कर लेगी तो क्या हर्ज है? केवल घर में चूल्हा फुकने के लिए तो इतना नहीं पढ़ी लिखी थी? वह भी काम करेगी तो आमदनी दोगुनी हो जायेगी, घर अच्छा से चलेगा। आप तो ऐसे ही कच –कच —–“ बीच में ही कमला देवी बेटा की बात को सपोर्ट करती हुई बोली –“ तब क्या, इनको क्या समझ में आएगा ई तो हमेशा पी-पा के बौरायल रहते हैं।”
“तुम दोनों को जो बुझाए, वह करो। मैं केवल पगड़ी बांधकर शादी में चला जाऊँगा । एक से एक खानदानी लडकी के पिता, जिन्हें मैं व्यक्तिगत रूप से जानता हूँ,आए। लेकिन एक नौकरी देखकर राम नाथ लाल की लडकी को पसंद करती हो,यह भविष्य के लिए अच्छा नहीं होगा । मुझे तो यह भी जानकारी है कि कुछ दिन पहले सुरभी अपनी चाची से मारपीट की थी और केस थाना तक चला गया था। कैसे–कैसे उसका नाम केस से हटा है|” सुरेश लाल की लंबी-चौड़ी भाषण से माँ और बेटा दोनों कुछ समय तक तो सकते में आ गए थे।लेकिन फिर वही आलाप अलापने लगे| होईयें वही जो राम रची राखा।
शादी पक्की हो गयी। कपड़ा-लत्ता, आजा-बाजा, मर-मिठाई, की तैयारी चलने लगी । सुरेश लाल के यहाँ शादी का पूरा माहौल बन गया| सगाई की रश्म पूरी हुई और उसके बाद से सुरभी का नाटक शुरू- मेरा गहना मेरी उपस्थिति में मेरे पसंद से लेना होगा| मेरा ड्रेस मेरे पसंद से लिया जायेगा आदि-आदि| जब कमला देवी इन सब बातों की जानकारी सुरेश लाल को देती, तो वे थोड़ा मुस्कुरा देते थे और दो-तीन शब्द बोलकर चुप हो जाते थे – “आगे –आगे देखती जाना होता है क्या?” जैसे ही सुरेश लाल अपनी बात खत्म करते कमला देवी वहाँ से छमक कर चल देती थी।
रविवार क दिन था। दोनों की छुट्टी थी। अभी शादी का चार दिन बाकी था। सुशांत अपनी माँ से कहा- “मम्मी, आज सुरभी मुझे एक पार्क में बुलाई है, मैं वहाँ जा रहा हूँ। पापा के पूछने पर बता देना कि मैं कुछ विशेष ऑफिसियल काम से ऑफिस गया हूँ। कह देना शाम तक लौटेगा।”
“ठीक है, इत्मीनान से जाना ।” माँ ने कहा।
सुशांत अपना बाईक लिया और चल दिया।
शाम में जब सुशांत आया तो उसका मुंह चमकने की जगह पर लटका हुआ था। चुपचाप अंदर घर में जाकर सो गया। ईक्का-दुक्का कर-कुटुंब आ गए थे। घर के बाहर के लोग को आप कुछ बताओ या न बताओ, घर के माहौल देखकर अंदाजा लगा ही लेते हैं। रात में दस बजने जा रहा था, बत्ती बुताकर सुशांत अध्जग्गु था। माँ बहुत दुलार-पुचकार कर बोली- “देखो बेटा, बाहर से कर-कुटुंब आने लगे हैं| शादी के घर में इस तरह से तुम रहोगे तो सभी लोग गलत-सलत अनुमान लगाने लगेंगे। जो बात है मुझसे कह दो, मैं निदान खोजने का प्रयत्न करूँगी । माँ की बात सुन उसे कुछ दिलासा हुआ। फिर उठा और कुछ नहीं ,कुछ नहीं कहता हुआ बेसिन पर गया और अपना मुँह-हाथ धोकर खाना खाने के लिए बैठ गया। चुपचाप खाना खाया और अपने बिछावन पर जाकर सो गया।
सुबह फिर माँ खोदने लगी सुशांत को| सुशांत बोला — “मैं उससे शादी नहीं करना चाहता हूँ|पापा से कह दो उसके को बाप को साफ़-साफ़ शब्दों में कह दें,मेरा बेटा वहाँ उससे विवाह करना नहीं चाहता है| रोज-रोज के नया -नया फरमाईस से मैं उब चुका हूँ|”
शादी के अंतिम घड़ी में इस बात को सुनकर कमला देवी का होश ठिकाने लग गया| वह बोली- बेटा, यह तुम क्या कह रहे हो? कल तुम्हारा लगन शुरू हो जाएगा, इतना दिन से गीत नाद चल रहा है, कार्ड छप गया,कार्ड बाँट गया, इक्का-दुक्का कुटुंब आने लगे हैं और तुम शादी की मनाही करने को कहते हो| पता है कितना जग-हंसाई होगी?
तब क्या करें? जब तक नौकरी नहीं लगी थी तबतक सहजता और सरलता की प्रतिमूर्ति बनी रहती थी| जब से नौकरी लगी है तब से मुझे एक गुलाम से ज्यादा कुछ नहीं समझती है| आज भी बकझक हो गया| क्या करोगे अब तो जहर पीना ही पडेगा| हो सकता है शादी के बाद वह सुधर जाए|
सुधरेगी तो नहीं, फिरभी अब जाएँ तो जाएँ कहाँ ? मैं जानता कि वह इस तरह से आचरण गिरगिट की तरह बदलने वाली है तो कभी उसके यहाँ सम्बन्ध के लिए कभी हामी नहीं भरता|
शादी के महज चौथा महीना से ही तकरार शुरू हो गयी| सारे झगड़ा को माँ और बेटा सालता लेते थे| लेकिन कमला देवी को अपने पति कके बात काटने का मलाल जरूर होता था| कभी अकेले में खूब रो- गाकर अपना दुःख मिटाती थी और कभी दो चार दिन तक खाना त्याग देती थी |
सुरभी और सुशांत की ड्यूटी रोज लगती थी। सुशांत का शनिवार और रविवार ऑफ था और सुरभी को केवल रविवार ही ऑफ था। सुरभी आठ और नौ बजे के बीच रोज उठती, सास चाय बना देती, सुशांत चाय ले जाता और दोनों घर के भीतर ही चाय पी लेते थे।फिर अखबार पढती और जल्दी- जल्दी स्नान करती, किचेन से खाना निकाल कर खाती और ऑफिस चली जाती।आठ नौ बजे तक सुशांत को भी बझाये रखती। रोज दिन का यही दिनचर्या था सुरभी का। लेकिन सुशांत , बेचारा सुशांत करे तो क्या करे ? सुरेश लाल को कोई फर्क नहीं पडता, खा पीकर मस्त रहते। दिन ब दिन गलती चली जा रही थी कमला देवी। “घर का ईज्जत बची रहे,भगवान इतना तो उसको सुबुद्धि दे दे उस नासमझ लडकी को। ” रोज उठकर चाय और खाना बनाती थी और भगवान से यही वरदान मांगती थी कमला देवी।
बहुत समय तक घर आँगन में कमला देवी को न देखकर सुरेश लाल को चिंता सताने लगी। सबेरे का बेटा बहु और पत्नी के तमाशा को देख चुके थे।सुशांत के कमरे की ओर कदम बढाए ,भीतर से आवाज आ रही थी- “ तुम नौकरी करती हो तो क्या? तुम जब उठो, माँ कुछ नहीं बोलती है, माँ रोज खाना बनाती है , चाय बनाती है। जिस समय माँ लंच बनाती रहती है तब तक तुम पलंग पर सोयी रहती हो। लेकिन आज जब छुट्टी का दिन है तो तुम्हे माँ को मदद नहीं करनी चाहिए ? माँ एक साल तक तो कुछ नहीं बोली थी। यदि आज गुस्सा-पीत में कुछ बोल दी तो सर पर आसमान उठाने की क्या जरुरत थी?”
“चुप रहो, मुझसे कुछ मत कहो. जाओ, माँ के आँचल में छुप जाओ। मैं कुछ नहीं करूंगी तुम्हे जो करना है,करो।” सुरभी के इस तरह की बात सुन सुरेश लाल का सारा नशा उतर चुका था। लगभग दोपहर का एक बज रहा था। सुरेश लाल पूरे घर में छान मारा, कमला देवी कहीं नहीं थी। फिर वे पिछुती की ओर रुख किये। गलिआरी होते हुए जब घर के पिछला भाग में गए तो कमला एक ईंट पर बैठकर सिसक रही थी।किसी के आने की आहट पाकर कमला आँख ऊपर की, उसका पति सुरेश लाल थे। दोनों हाथ से पकड़ के उन्होंने अपनी कमला को उठाया, खड़ा किया। कमला फफक-फफक कर रोने लगी।
सुरेश लाल कमला को चुप कराते हुए बोले- “धत पगली, तुम्हे चिंता करने की क्या जरुरत है? उस दिन नशा में भी मैंने इस रिश्ता से सहमत नहीं न था लेकिन पैसा की ललक ने तुम माँ बेटा को मदहोश कर दिया था। पैसा जीवन यापन का एक साधन हो सकता है लेकिन पैसा से सुख मिले ,यह जरूरी नहीं है।कमौआ लडकी तुम्हे चाहिए था न , मिल गयी। लेकिन तुम्हे क्या मिला? मेरी दोनों बेटियों को क्या मिला? मेरा बेटा को चिंता और मानसिक तनाव के सिवा क्या मिला? मेरी तो बात ही छोड़ दो. खैर , छोडो इन बातों को, चलो और चित को शांत करो।”
कमला देवी को आज उसका पति शराबी और पियक्कड़ नहीं लग रहा था। आज तो उनकी हर आवाज सारगर्भित लग रही थी। जैसे ही पिछुती से घर आते हुए अपने माँ-बाप को सुशांत देखा, उससे माँ की स्थिति देखा नहीं गया। वह माँ के पास जाकर बोला- “माँ, इस रिश्ता में तुम भी मेरे बराबर जिम्मेदार हो। पिता जी की राय उस दिन मान लिए होते तो घर इस तरह बरबाद नहीं होता। “
तभी सिंहनी की तरह गरजती हुई सुरभी घर से बाहर निकली और बोली- “ ऐसे घर में मेरा गुजारा संभव नहीं है।सब मिलकर मुझे टॉर्चर करता है। मैं यहाँ अकेली हूँ तो सब मिलकर मुझे सताता है” तबतक वहाँ सुरेश लाल आ गए फिरभी सुरभी चुप नहीं हुई वह बोलती रही।
सुरेश लाल अपने पुराने दिनों की गरज वाली आवाज में बोले – “ बहू, मैंने आजतक कुछ नहीं बोला। लेकिन आज हद हो गयी है। जाओ अभी घर के भीतर जाओ। बहुत घर को नचा दिया अब और नहीं। सुशांत भी नौकरी करता है।क्या वह घरेलू काम नहीं करता? मैं भी तीस वर्ष नौकरी किया हूँ , डियूटी के बाद आकर घर भी काम करता है।बहुत सारी बहूओं को देखा है मैंने जो घर बाहर दोनों संभालती है।अब घर में एक भी ऊँची आवाज में बात नहीं होगी।शाम को तुम्हारे माँ- बाप को बुलाता हूँ और जिसमे घर में शान्ति स्थापित हो सकता है,वैसा ही फैसला मिल बैठकर किया जाएगा। अपना अकड छोड़ दो वरना मुझे अपने अतीत में जाना पडेगा। यह भलीभांति समझ लो ।मैं वह आज नहीं जिसे तुम आजतक देखी हो।”
मेजर साहब की कड़क आवाज से डरी-सहमी हुई सुरभी घर के अंदर गयी।खाना उस समय तक नहीं बन पाया था। कमला देवी को अपने पति की बात से बहुत शकुन मिला था। आज कमला के हृदय में अपने पति के प्रति एक अनुराग उत्पन्न हो गया था और उनके प्रति श्रद्धावान हो गयी थी। मन शांत होने पर कमला देवी किचेन में गयी।वहाँ सुरभी पहले से ही चावल बना चुकी थी और सब्जी भून रही थी। कमला देवी को देखकर सुरभी बोली –“ मम्मी जी, आज से रोज छुट्टी के दिन मैं खाना बनाकर आप सबों को खिलाऊँगी। बाबूजी की बात ने मेरी ऑंखें खोल दी है।” आज समझ में आ गया कि कमौआ का मतलब केवल ऑफिस में ही कमौआ नहीं बल्कि घर में भी। दोनों एक दूसरे से गले मिलकर अपनी- अपनी मनो मालिनता को धो दी। सच में- शठे शाठ्यं समाचरेत ।