कमाऊ बेटा
#कमाऊ बेटा#( पितृ दिवस पर विशेष)
हैलो,कौन ?
कैसे हो बिभोर बेटा?
अरे पापा! आप,मैं बिल्कुल ठीक हूँ । आप सब कैसे हैं ?
हम सब भी ठीक ही हैं। अब बुढ़ापे में क्या ठीक और क्या न ठीक , सब एक जैसा ही रहता है।
क्या हुआ पापा,कोई विशेष बात ? कोई परेशानी हो तो बताओ, पैसे भेज देता हूँ ?
“नहीं बेटा, पैसे-रुपये कुछ नहीं चाहिए। बस तुम लोगों को देखने का मन हो रहा है। बहुत दिन हो गए, एक बार आकर घूम जाओ। ज़िंदगी का क्या भरोसा? आज है और कल …..।”
ऐसा क्यों बोल रहे हैं आप ? आपको तो मालूम है कि हम सब आप लोगों से मिलने आना चाहते हैं, पर छुट्टी नहीं मिलती।
बेटा, “तुम्हारी माँ का बच्चों को और तुम्हें देखने का बहुत मन है। थोड़ा समय निकालकर आ जाओ।”
“आ तो जाऊँ पिता जी,मेरा भी बहुत मन है आपसे और माँ से मिलने का,पर क्या करूँ? छुट्टी ही नहीं मिलती है। कभी मेरे ऑफिस में काम के कारण छुट्टी नहीं मिलती तो कभी आपकी बहू को और जब दोनों के ऑफिस के हालात सामान्य होते हैं तो बच्चों का स्कूल, उनकी पढ़ाई-लिखाई। क्या करूँ, कुछ समझ में नहीं आता? आप लोगों को लगता है कि मैं आपसे मिलने नहीं आना चाहता।”
नहीं बेटा, हम लोग ऐसा बिल्कुल नहीं सोचते। बस ,तुम लोगों को देखने का मन हो रहा है, इसलिए …..
जी, मैं कोशिश करता हूँ, देखता हूँ क्या हो सकता है ?
ठीक है बेटा,हमें इंतज़ार रहेगा।
अगले दिन सुबह फिर बिभोर के पास फोन जाता है और अबकी बार माँ फोन करती है
हैलो ,बेटा बिभोर! मैं तुम्हारी माँ बोल रही हूँ,उन्होंने रोते हुए कहा।
“माँ, कल ही तो पिताजी से बात हुई थी और मैंने उनसे कहा भी था कि मैं कोशिश करता हूँ ,किसी तरह आप लोगों के पास आने की, फिर आप क्यों रो रही हैं? क्या पिताजी ने आपको बताया नहीं?”
बताया था, बेटा। पर मैं अब इसलिए रो रही हूँ कि तुम्हारे पिता जी अब इस दुनिया में नहीं रहे। रात को एक बजे उनके सीने में दर्द हुआ और वे हमें छोड़कर चले गए।
माँ, तो तुमने मुझे रात में ही फोन करके क्यों नहीं बताया ?
क्या बताती बेटा, जो होना था ,वह तो हो चुका।मैंने सोचा ,तुम्हारी नींद क्यों खराब करूँ? दिन भर की ऑफिस की भाग-दौड़ करके आए होगे और सो रहे होगे।
-डाॅ बिपिन पाण्डेय