कमाई
जब बात कमाई की होती है तो लोगों का जवाब
धन , दौलत , पैसा , जायदाद की सोच पर जा ठहरता है
प्रत्येक मिनट प्रत्येक घंटा , प्रति दिन , प्रति महीना और हर साल कितना कमाया।
लेकिन हम भूल जाते हैं कि सिर्फ सम्पत्ति से ही कमाई की परिभाषा तय नहीं की जा सकती है।
हमनें अभी तक ज़िन्दगी का कितना तजुर्बा कमाया।
हमनें अभी तक ज़िन्दगी में रिश्तों को कैसे संजोया।
हमनें अभी तक ज़िन्दगी में अपने लिए लोगों के दिलों में प्यार कितना बनाया।
और आखिरी में हमनें ज़िन्दगी में समाज में सम्मान कितना कमाया।
सम्पत्ति, सम्मान, प्यार, तजुर्बा और रिश्तें सब हमारी जिंदगी के कमाई के ही रुप हैं।
शिव प्रताप लोधी