कमसिन हसीना सर्प नगीना
कमसिन हसीना सर्प नगीना
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सुन्दर सूरत मन में छाई।
तुम ही जीवन की परछाई।
कमसिन हसीना सर्प नगीना,
बलखाती कटि जब मटकाई।
लाल गुलाबी होंठ रसीले,
नशीली नजर झट टकराई।
वक्ष उभार पंछी के जोड़े,
खुद ही देखत गौरी शरमाई।
हुस्न पिटारी बन्द लिफाफ़ा,
अंग प्रत्यंग चढी अंगड़ाई।
जोबन छाया डुल डुल जावे,
कैसी पढ़त इश्क पढ़ाई।
इश्क खुमारी तन मन खाये,
कहीं कोई नहीं सुनवाई।
नीले नैनन जाल बिछाया,
कोरी जमानत जब्त करवाई।
आग लगी कोरे चितवन में,
हो न पाए कभी भरपाई।
सिर से पाँव सुरूप सवैया,
शोभन शक्ल खूब गठवाई।
मनसीरत मन बहुत दिवाना,
कैसे सहूँ तेरी रुसवाई।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैंथल)