Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
9 Sep 2024 · 3 min read

#कमसिन उम्र

#नमन मंच
#विषय कमसिन उम्र
#शीर्षक शिक्षक दिवस
दिनांक ०९/०९/२०२४
सभी आदरणीय गुरु जनों को समर्पित ‘लेख’

राधे राधे भाई बहनों
हर साप्ताहिक प्रोग्राम में हम किसी न किसी मुद्दे को लेकर उस पर चिंतन और चर्चा करते हैं !
आज के चिंतन और चर्चा का विषय है ‘कमसिन उम्र’
आज के वातावरण का छोटी उम्र के बच्चों पर होने वाला दुष्प्रभाव !
मेरी नजर से (यह मेरे अपने विचार हैं)

“कमसिन उम्र”

आजकल के बच्चे समय से पहले बड़े होते जा रहे हैं, कंप्यूटर टेक्नोलॉजी के इस युग में सौलह वर्ष की आयु होते होते बच्चे अपनी जिंदगी के फैसले खुद लेने लगते हैं,
इसका मूल कारण है हमारे देश की शिक्षा पद्धति मैं
विदेशी कल्चर मॉडल का समावेश और हम भी बड़े गुरूर से लोगों से कहते देखा मेरा बच्चा फलां फलां कॉलेज से डिग्री ले के आया है !
और कुछ समय बाद जब वही बच्चा मां बाप को विदेशी कल्चर का रंग रूप दिखाता है अपनी बीवी बच्चों को लेकर अलग रहने लगता है या विदेश में जाकर बस जाता है !
तब उस बच्चे के गुण दोष को लेकर लोगों से तरह-तरह की बातें करते हैं उसे बुरा भला कहते हैं,
उसकी बीवी को इस हालात का जिम्मेदार ठहराते हैं,जबकि वास्तविकता यह है कि हमने उस बच्चों की परवरिश को उस ढंग से की ही नहीं जिस तरह से करनी चाहिए, हमने उस बच्चे को पैसा कमाने की मशीन (यंत्र) बना डाला, हमने उस बच्चे को अच्छे व्यावसायिक कॉलेज से डिग्री दिलवाई
बच्चा कम से कम धन को कमाने में किसी का मोहताज नहीं रहेगा,अच्छा किया होना भी यही चाहिए !
लेकिन इसके साथ साथ उस बच्चे की शिक्षा में
प्रेम, ममता, भाईचारा,धैर्य, सहनशीलता,परिवार को कैसे साथ लेकर चला जाए, समाज में किस प्रकार से अपना योगदान दे, स्वहित से ऊपर उठकर किस प्रकार से देश के स्वाभिमान की रक्षा की जाए, इन सब भारतीय संस्कृति के बीजों को
डालना तो हम भूल ही गए !

इन सब गुणों को विकसित करने के लिए शिक्षा का मंदिर ही एक माध्यम है, जिसे बचपन से ही दिया जाना चाहिए, लेकिन अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है कि किसी भी स्कूल कॉलेज में सांस्कृतिक मूल्यों को सीखने वाला कोई शिक्षक नहीं होता, म्यूजिक टीचर मिल जाएगा, खेल कूद प्रशिक्षक मिल जाएगा, हिंदी गणित और अंग्रेजी को सिखाने वाले गुरुजन मिल जाएंगे, कमी है तो बस भारतीय संस्कृति के बीजों के गुरु की !

यही वजह है आजकल के बच्चे धन दौलत तो खूब कमा रहे लेकिन साथ ही विदेशी कुसंगति के
दुष्प्रभाव को हम सब झेल रहे हैं !

अभी भी समय है कुछ नहीं बिगड़ा हमारे देश की शिक्षा पद्धति के विद्वान, भारतीय संस्कृति की रक्षा करने वाले धर्म ध्वजरक्षक,समाज के वरिष्ठ नागरिक, इन सबको मिलकर हमारे देश की शिक्षा व्यवस्था पर ध्यान देना चाहिए, हमारे देश की सरकारों के साथ मिलकर नीति निर्धारण में अपनी भूमिका को ईमानदारी से निभाना चाहिए !

हमारे देश की शिक्षा नीति और पद्धति को नए सिरे से सृजन करने का समय आ गया है दोस्तों बच्चों के अध्यनरत किताबों में आर्थिक राजनीतिक सामाजिक टेक्नोलॉजी पर्यावरण क्षेत्र के साथ भारतीय संस्कृति सामूहिक परिवार के महत्व को समझते हुए उदारता सहनशीलता संघर्षशील जीवन को अधिक प्रोत्साहन देना पड़ेगा !

यह मेरा एक सुझाव है यह मेरे मन की एक पीड़ा है
जो मैंने आपके सामने रखी,
इसको मैंने महसूस किया समाज में दस में से आठ बुजुर्ग दंपति जो खुद प्रशासनिक सेवा में ऊंचे ओहदे पर रह चुके हैं और इस पीड़ा के शिकार है लेकिन समाज में बच्चों की इज्जत और होने वाली बदनामी के डर के कारण अपने दुख को जग जाहिर नहीं करते !
अगर इससे किसी की भावना आहत होती है
उसके लिए मैं आप से माफी मांगता हूं !
आज के लिए बस इतना ही अगले सप्ताह फिर किसी सामाजिक मुद्दे को लेकर उस पर चिंतन और चर्चा करेंगे !

चलते चलते इसी बचपने पर एक छोटी सी कविता लिखी है शायद आपको अच्छी लगे !

उम्र तेरी हुई अभी सोलहवें साल की
उमंगे हिलोरें मारती उत्पात की !

करना चाहता है तू अभी से मनमर्जी
तेरे भले की बातें भी तुझे खूब अखरती
ना समझ है तू दुनिया की टेढ़ी चालों से !

अरे खुद को इतना ज्ञानी न समझ
अभी तो संसार को समझना बाकी है !

दुश्मन ना समझ चाहने वालों को
सफलता बहुत दूर है मंजिल से
रस्ता बड़ा कठिन है पार पाने को !

स्वरचित मौलिक रचना
राधेश्याम खटीक
भीलवाड़ा राजस्थान

64 Views

You may also like these posts

आतम अनुभव
आतम अनुभव
Nitesh Shah
शहर में बिखरी है सनसनी सी ,
शहर में बिखरी है सनसनी सी ,
Manju sagar
ग़ज़ल
ग़ज़ल
Shweta Soni
न जाने वो कैसे बच्चे होंगे
न जाने वो कैसे बच्चे होंगे
Keshav kishor Kumar
यूं तो रिश्तों का अंबार लगा हुआ है ,
यूं तो रिश्तों का अंबार लगा हुआ है ,
ओनिका सेतिया 'अनु '
क्या अपने और क्या पराए,
क्या अपने और क्या पराए,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
जिंदगी एक खेल है , इसे खेलना जरूरी।
जिंदगी एक खेल है , इसे खेलना जरूरी।
Kuldeep mishra (KD)
मुक्तक
मुक्तक
sushil sarna
*अपनेपन से भर सको, जीवन के कुछ रंग (कुंडलिया)*
*अपनेपन से भर सको, जीवन के कुछ रंग (कुंडलिया)*
Ravi Prakash
प्रेम गजब है
प्रेम गजब है
ऐ./सी.राकेश देवडे़ बिरसावादी
ज़ेहन पे जब लगाम होता है
ज़ेहन पे जब लगाम होता है
Johnny Ahmed 'क़ैस'
" पाबन्दी"
Dr. Kishan tandon kranti
.
.
*प्रणय*
पछतावा
पछतावा
Dipak Kumar "Girja"
डॉ अरूण कुमार शास्त्री
डॉ अरूण कुमार शास्त्री
DR ARUN KUMAR SHASTRI
प्रतिस्पर्धाओं के इस युग में सुकून !!
प्रतिस्पर्धाओं के इस युग में सुकून !!
Rachana
मन मुकुर
मन मुकुर
डॉ विजय कुमार कन्नौजे
उम्रें गुज़र गयी है।
उम्रें गुज़र गयी है।
Taj Mohammad
तुम्हे वक्त बदलना है,
तुम्हे वक्त बदलना है,
Neelam
कलम का वरदान
कलम का वरदान
Indu Nandal
संसार की इस भूलभुलैया में, जीवन एक यात्रा है,
संसार की इस भूलभुलैया में, जीवन एक यात्रा है,
पूर्वार्थ
क्या अच्छा क्या है बुरा,सबको है पहचान।
क्या अच्छा क्या है बुरा,सबको है पहचान।
Manoj Mahato
मन मसोस
मन मसोस
विनोद सिल्ला
जिंदगी और जीवन में अपना बनाएं.....
जिंदगी और जीवन में अपना बनाएं.....
Neeraj Agarwal
समंदर
समंदर
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
किसी की लाचारी पर,
किसी की लाचारी पर,
Dr. Man Mohan Krishna
हम ऐसे भी बुरे नहीं
हम ऐसे भी बुरे नहीं
Jyoti Roshni
विवश मन
विवश मन
डॉ राजेंद्र सिंह स्वच्छंद
अब बहुत हुआ बनवास छोड़कर घर आ जाओ बनवासी।
अब बहुत हुआ बनवास छोड़कर घर आ जाओ बनवासी।
Prabhu Nath Chaturvedi "कश्यप"
मैंने खुद को जाना, सुना, समझा बहुत है
मैंने खुद को जाना, सुना, समझा बहुत है
सिद्धार्थ गोरखपुरी
Loading...