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28 Dec 2024 · 3 min read

कमबख्त़ तुम याद बहुत आती हो….!

कमबख्त़ तुम याद बहुत आती हो
बनके चाहत आँखों में ठहर जाती हो

रसीली चितवन, नशीली आँखें
दराज़ पलकें हैं महकी साँसें
शगुफ़्ता चेहरा, तिल का पहरा
दमकता माथा, मेहताब ठहरा

कभी तितली कभी बिजली सी नज़र आती हो
बनके राहत बनके आफ़त सी फहर जाती हो

गुलाबी लब हैं सुर्ख़ कलियाँ
सोम–सुधा भरी ये अँखियाँ
हमा हलावत, हमा मलाहत
अदा शबनमी लिए लताफ़त

कभी शबनम कभी शोला सी नज़र आती हो
बनके स्वागत बनके साँसत सी लहर जाती हो

ये जिस्म नाज़ुक, ये नर्म बाँहें
सुडौल बाज़ू हैं थामें राहें
महीन अबरू ये काले गेसू
सुनहरी रंगत में घुलते टेसू

कभी हमदम कभी बरहम सी नज़र आती हो
बनके दावत बनके शामत सी बिफर जाती हो

उभरता सीना, लिए सफ़ीना
टँके दो तारे चमक नगीना
हमा तरन्नुम, हमा वजा़हत
जु़ँबान शीरीं लिए शरारत

कभी सरगम कभी परचम सी नज़र आती हो
बनके आयत बनके सायत सी उतर जाती हो

हसीन गर्दन, कमर है करधन
श्रृँगार सोलह करें हैं नर्तन
हमा तरावत, हमा सबाहत
गुलाबी गाल लिए नदामत

कभी लचकती कभी लहकती सी नज़र आती हो
बनके आरत बनके पारत सी दहर जाती हो

कभी तुम मुझको बुलाओगी क्या?
पलक पे अपनी बिठाओगी क्या?
फ़लक तुम्हारे जो चढ़ न पाया!
अलक में अपनी सजाओगी क्या?

जली चिता से उठाओगी क्या?
मुझे सेज पर सुलाओगी क्या?
दोगी मुझे नया सा जीवन!
प्रणय–कँवल तुम खिलाओगी क्या?

कभी पिघली कभी फिसली सी नज़र आती हो
बनके बाबत बनके साबत सी कहर ढा़ती हो

मेरी मोहब्बत इल्ज़ाम लेगी!
बदनाम होकर भी नाम देगी!
मेरी मोहब्बत किस्सा–ए–आम होगी!
बर–सर–ए–बाज़ार न नीलाम होगी!

कभी टहलता लिए दर्द–ए–दिल!
कभी बहलता लिए रंज–ओ–ग़म!
यही नज़ारा मिला है तुमसे!
यही सहारा मिला है तुमसे!

जफ़ा की ज़िल्लत कभी मिले तो!
वफ़ा की फ़ुर्सत कभी मिले तो!
जुनूँ का दामन मेरा पकड़ना!
मेरा भरोसा यकीन करना!

करीब और करीब अब बढ़ती ही नज़र आती हो
बनके उल्फ़त बनके हसरत आँखों में उतर जाती हो

कमबख्त़ तुम याद बहुत आती हो
बनके चाहत आँखों में ठहर जाती हो

––कुँवर सर्वेंद्र विक्रम सिंह✍🏻
★स्वरचित रचना
★©️®️सर्वाधिकार सुरक्षित

kamabakht tum yaad bahut aatee ho
banake chaahat aankhon mein thahar jaatee ho

raseelee chitavan, nasheelee aankhen
daraaz palaken hain mahakee saansen
shagufta chehara, til ka pahara
damakata maatha, mehataab thahara

kabhee titalee kabhee bijalee see nazar aatee ho
banake raahat banake aafat see phahar jaatee ho

gulaabee lab hain surkh kaliyaan
som–sudha bharee ye ankhiyaan
hama halaavat, hama malaahat
ada shabanamee lie lataafat

kabhee shabanam kabhee shola see nazar aatee ho
banake svaagat banake saansat see lahar jaatee ho

ye jism naazuk, ye narm baanhen
sudaul baazoo hain thaamen raahen
maheen abaroo ye kaale gesoo
sunaharee rangat mein ghulate tesoo

kabhee hamadam kabhee baraham see nazar aatee ho
banake daavat banake shaamat see biphar jaatee ho

ubharata seena, lie safeena
tanke do taare chamak nageena
hama tarannum, hama vajahat
junbaan sheereen lie sharaarat

kabhee saragam kabhee paracham see nazar aatee ho
banake aayat banake saayat see utar jaatee ho

haseen gardan, kamar hai karadhan
shrrngaar solah karen hain nartan
hama taraavat, hama sabaahat
gulaabee gaal lie nadaamat

kabhee lachakatee kabhee lahakatee see nazar aatee ho
banake aarat banake paarat see dahar jaatee ho

kabhee tum mujhako bulaogee kya?
palak pe apanee bithaogee kya?
falak tumhaare jo chadh na paaya!
alak mein apanee sajaogee kya?

jalee chita se uthaogee kya?
mujhe sej par sulaogee kya?
dogee mujhe naya sa jeevan!
pranay–kanval tum khilaogee kya?

kabhee pighalee kabhee phisalee see nazar aatee ho
banake baabat banake saabat see kahar dhatee ho

meree mohabbat ilzaam legee!
badanaam hokar bhee naam degee!
meree mohabbat kissa–e–aam hogee!
bar–sar–e–baazaar na neelaam hogee!

kabhee tahalata lie dard–e–dil!
kabhee bahalata lie ranj–o–gam!
yahee nazaara mila hai tumase!
yahee sahaara mila hai tumase!

jafa kee zillat kabhee mile to!
vafa kee fursat kabhee mile to!
junoon ka daaman mera pakadana!
mera bharosa yakeen karana!

kareeb aur kareeb ab badhatee hee nazar aatee ho
banake ulfat banake hasarat aankhon mein utar jaatee ho

kamabakht tum yaad bahut aatee ho
banake chaahat meree aankhon mein thahar jaatee ho

––kunwar sarvendra vikram singh✍🏻
★svarachit rachana
★©®sarvaadhikaar surakshit

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