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8 May 2024 · 1 min read

कमबख़्त ये इश्क़ भी इक आदत हो गई है

कमबख़्त ये इश्क़ भी इक आदत हो गई है,
उसके लिए तो पूरी ज़वानी ख़राब हो गई है!!

सोचता हूं शबनमी होठों पे चिलमन रखूँ,
हिज्र में भी उसकी सुकून-ए-दीदार हो गई है!!

ख़्वाब झूठे हैं कि सच्चे, बस ये मेरा वहम है,
मिरी जानाॅं अब ख़्वाबों में खबरदार हो गई है!!

कीमिया दवाओं का असर अब नहीं होता मुझपे,
तेरी वफ़ा-ए-हिज्र-ए-वस्ल अब असरदार हो गई है!!

कयामत के दिन गुजर रहे, बुझ गए शौक़ के रंग,
भीगी हुई निगाहों से ज़िंदगी यूं चमकदार हो गई है!!

©️ डॉ. शशांक शर्मा “रईस”

Language: Hindi
40 Views
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