कभी हम खफा,कभी तुम खफा,
कभी हम खफा,कभी तुम खफा,
बस यूँ ही हुई मोहब्बत दिल से दफा।
कभी तबस्सुम तो कभी अश्कों की पनाह मिली,
दिल को हुए तज़ुर्बे ना जाने कितनी मर्तबा।
क्यों ना करें शिकायत हम दोस्तों से अपने,
निभाते हैं हर कसम दोस्ती की मरहब्बा।
याद आती है माँ की तो आँचल थाम लेती हूँ,
माँ की कमी को भला कौन पूरा कर सका।
हम तो प्यार के इंतज़ार में उम्रभर बैठे रहे,
कोई हमें,हमारी तरह प्यार कर ना सका।
शौहरत की आस में ना जाने क्या-क्या किया हमने,
वो चाँद हमारे मंसूबो पर खरा ना उतर सका।
अपने दिल का हाल हमने बहुतों से साँझा किया,
कोई शक़्स हमारे दर्द को कम ना कर सका
प्यार की राहों पर हम अक्सर चला करते हैं,
कोई अँधेरा हमको गुमराह ना कर सका।
वादों को निभाने का हमने बीड़ा उठाया था,
वक़्त का शिकंजा हमसे वादाखिलाफी ना कर सका
जब भी जी भर आता है तो जी भरकर रो लेते हैं हम,
हमारे आँसुओं पर कोई कब्ज़ा ना कर सका।
सोनल निर्मल नमिता