कभी मिले फुरसत तो उन लड़कों के बारे में सोचना,
कभी मिले फुरसत तो उन लड़कों के बारे में सोचना,
जिन्होंने कभी मोहब्बत के बारे में सोचा ही नहीं,
कभी जिम्मेदारियों के तले दबे होने की मजबूरी,
तो कभी इस समाज से कदम ना मिला पाने की मजबूरी,
चाहतों को बहुत सीमित रखने वाले लड़के,
कभी खुद में जहां समेटे तो कभी भीड़ में अकेले चलने वाले लड़के!
और जब उन्होंने मोहब्बत के बारे में सोचा तो जमाने ने उन्हें स्वीकारा नहीं!
कभी उम्र की दुहाई दी तो कभी छोटी नौकरी की बधाई दी!
इसी बीच कहीं किसी कोने में छिपी खामोश और झल्ली सी लड़की की नज़र पड़ती है ऐसे सितारों पर,
जिन्हें जरूरत है एक समझदार और सुलझे हुए इंसान की,
वह बेपरवाह और झल्ली सी लड़की धीरे धीरे उस लड़के को अपना जहां समझने लगती है।
समाज के उतार-चढ़ाव से लड़ते-लड़ाते
उसमें समाज से लड़ने की हिम्मत आ जाती है वह उस लड़के के लिए सर्वस्व न्योछावर करने के लिए तैयार होती है!
ऐसी होती है संघर्षशील लड़कों की प्रेम कहानी जिसे एक बेपरवाह लड़की अमर कर जाती है!