कद्र।
कलयुग की इस दुनिया में,
पत्थर भी पिघल सकता है,
यही तो ख़ासियत-ए-ज़िंदगी है दोस्त,
कि इंसान खुद भी गिर के संभल सकता है,
ना इतराइये ये सोच कर,
कि आपके लिए भी कोई मचल सकता है,
कद्र का मोहताज हर कोई है यहां,
कि इंसान कभी भी बदल सकता है।
-अंबर श्रीवास्तव।