कभी न होते आम
रहे हमेशा अजनबी,
कभी न होते आम
वज़ीर आज़म ही रहे,
पहुँचे ना पैग़ाम
رَہے ہَمیشَہ اَجْنَبی،
کبھی نہ ہوئے عام
وزیر اعظم ہی رہے،
پہنچے نا پیغام
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लोकतान्त्रिक व्यवस्था ने ऐसी दीवार खींच दी है कि जनता द्वारा जनता के लिए चुनी गई सरकार के प्रतिनिधि सदैव ही जनता से दूर ही रहे हैं। कभी भी वे लोगों के काम नहीं आये या यूँ कह लीजिये लोगों के लिए काम न कर सके। मन्त्री से लेकर उनके सन्तरी तक सब महान हो गए। न तो उनके सन्देश जनता तक ही ठीक से पहुँचे और न ही जनता उन्हें अपना सन्देश दे पाई।