कभी ना अपने लिए जीया मैं…..
कभी ना अपने लिए जीया मैं…..
जब भी जीये औरो के लिए जीया मै।।
जब सोचा अब अपने लिए जीना है..
तो अपनो ने सोचा कि कैसे जीने लगा मै…
भूल गया था मैं, कि हक नहीं यू जीने का मुझे…
काटनी है जिंदगी मेरी, अब यूंही मुझे…
अक्सर सोचता हूं, कि क्या खता थी मेरी…
क्या मुझे अपने से जीने का, हक भी नहीं…
की थी कोशिश एक, मैने भी अपने से जीने की…
पर वो कोशिश भी मेरे अपनों को, नागवार सी गुजरी।।
थक गया हूं, थम गया हूं मैं…
खुद से हार गया हूं, अब हार गया हूं मै।।