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17 Jul 2023 · 1 min read

कभी ज्ञान को पा इंसान भी, बुद्ध भगवान हो जाता है।

ऊँचे पहाड़ों सा वो कभी, चट्टान हो जाता है,
बहती नदी सा कोमल, भी इंसान हो जाता है।

झूझता है आंधियां से, विशाल दरख़्त की तरह,
फूंक से झोंकों से भी कभी, परेशान हो जाता है।

सूरज बन चढ़ता है, अनंत आकाश में इक पल,
दूजे पल में धरती चीर कर, वीरान हो जाता है।

समन्दर सा गहरा, पी जाता है दरिया के दरिया,
पानी के बुलबुलों सा कभी, बेईमान हो जाता है।

चमकता है कभी चांद सा, रजत बन कर रातों को,
कनक सा कभी वसंत बन कर, जवान हो जाता है।

अरुणोदय की लाली सा, भोर के तारे जैसे कभी,
अम्बर पे इंद्रधनुष की कभी, कमान हो जाता है।

परिंदों सा चहकता है, कभी कूकता है कोयल सा,
कभी उदास शाम के पतझड़ सा, बेज़ान हो जाता है।

जीवंत खिलखिलाता है कभी, फूलों पर सुगन्ध जैसे,
कभी सूखे पत्तों सा लरज कर, बे-जुबान हो जाता है।

ठहर जाता है कभी, शांत समन्दर की तरह बे-हलचल,
जंगल की आग सा कभी-कभी, घमासान हो जाता है

बांध बन रोक लेता है, कभी बहते भाव को, बहाब को,
कभी जंगली जानवर की तरह भी, हैवान हो जाता है।

ख़ोज लाता है कभी कभी, ख़ुद के पार जा वो मोक्ष को,
कभी ज्ञान को पा इंसान भी, बुद्ध भगवान हो जाता है।
– मोनिका

3 Likes · 1 Comment · 210 Views
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