कभी-कभी आते जीवन में…
कभी-कभी आते जीवन में,
ऐसे सुखकर पल।
झूम-झूम उठता मन, जैसे
आवारा बादल।
निज अस्तित्व खोज में मानव,
दिनभर चला चले।
रोज निकलता सूरज जैसे,
जैसे रोज ढले।
आस बँधाती आकर जग को,
शुभ्र किरण चंचल।
कभी-कभी …..
बहुत दिनों के बाद कभी यूँ,
दो प्रेमी मिलते।
उमड़ता नेह, पुष्प खुशी के,
मन-मानस खिलते।
बातें करते चलते, जाते
कितनी दूर निकल।
कभी-कभी……
पूर्ण चंद्र को देख गगन में,
सागर-ज्वार उठे।
रूप पान कर हृदय तृप्त हो,
तब ही वेग घटे।
पा संस्पर्श रवि-रश्मियों का
खिल उठते शतदल।
कभी-कभी…..
बाँध टकटकी प्यासा चातक,
तकता स्वाति-नखत।
चकोर शशि का रूप निहारे,
चाहे उसे फ़क़त।
तोड़ बंध मिलने सागर से,
बहती नदी विकल।
कभी-कभी……
झलक प्रिय की जरा दिखे तो,
मन झूमे-नाचे।
ओझल होते ही छवि उसकी,
गुण उसके बाँचे।
खुशबू से आँगन भर जाता,
खुशियों से आँचल।
कभी-कभी…..
जीवन एक सफर है जिसमें,
कदम-कदम काँटे।
सुख की कलियाँ, गम के बदरा
भाग्य-चक्र बाँटे।
मिलते यहाँ सुजन कुछ, जिनसे
मिलता ज्ञान विरल।
कभी-कभी आते जीवन में,
ऐसे सुखकर पल।
© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र.)
“काव्य अक्षत” से